साधना वैद की साधना
“सम्वेदना की नम धरा पर”
जिसको मन मिला है एक कवयित्री का, वो सम्वेदना की
प्रतिमूर्ति तो एक कुशल गृहणी ही हो सकती है। ऐसी प्रतिभाशालिनी कवयित्री का नाम
है साधना वैद। जिनकी साहित्य निष्ठा देखकर मुझे प्रकृति के सुकुमार चितेरे श्री
सुमित्रानन्दन पन्त जी की यह पंक्तियाँ याद आ जाती हैं-
"वियोगी होगा पहला कवि, हृदय से उपजा होगा गान।
निकल कर नयनों से चुपचाप, बही होगी कविता
अनजान।।"
आमतौर पर देखने
में आया है कि जो महिलाएँ ब्लॉगिंग कर रही हैं उनमें से ज्यादातर चौके-चूल्हे और
रसोई की बातों को ही अपने ब्लॉगपर लगाती हैं। किन्तु साधना वैद ने इस मिथक को
झुठलाते हुए, सदैव साहित्यिक सृजन ही अपने ब्लॉग “सुधिनामा” में किया है।
चार-पाँच दिन पूर्व मुझे डाक द्वारा “संवेदना की
नम धरा पर” काव्य संकलन प्राप्त हुआ। पुस्तक के नाम और आवरण ने मुझे प्रभावित किया
और मैं इसको पढ़ने के लिए स्वयं को रोक न सका। जबकि इससे पूर्व में प्राप्त हुई कई
मित्रों की कृतियाँ मेरे पास समीक्षा के लिए कतार में हैं।
सादना वैद ने
अपने काव्य संग्रह “संवेदना की नम धरा पर” में यह सिद्ध कर दिया है कि वह न केवल
एक कवयित्री है बल्कि शब्दों की कुशल
चितेरी भी हैं-
"चल मन ले चल मुझे झील के उसी किनारे।
जहाँ दिखा था पानी में प्रतिबिम्ब तुम्हारा,
उस इक पल से जीवन का सब दुख था हारा,
कितनी मीठी यादों के थे मन में तारे।
चल मन ले चल मुझे झील के उसी किनारे।"
कवयित्री ने अपने काव्यसंग्रह
की मंजुलमाला में एक सौ इक्यावन रचनाओं के मोतियों को पिरोया है जिनमें माँ, आशा, उलझन,
मौन, मेरी बिटिया, अन्तर्व्यथा, संकल्प, चुनौती, आहट, गुत्थी, चूक, अंगारे, कश्ती,
संशय, हौसला, सपने, लकीरें, हाशिए, विश्वास आदि अमूर्त मानवीय संवेदनाओं पर तो अपनी संवेदना बिखेरी है साथ ही दूसरी ओर प्राकृतिक उपादानों को भी अपनी रचना का विषय बनाया है।
इसके अतिरिक्त प्रेम के विभिन्न रूपों को भी उनकी रचनाओं में विस्तार मिला है।
“वह तुम्हीं हो सकती थी माँ
जो बाबू जी की लाई
हर नई साड़ी का उद्घाटन
मुझसे कराने के लिए
महीनों मेरे मायके आने का
इन्तजार किया करती थी
कभी किसी नयी साड़ी को
पहले खुद नहीं पहना
वह तुम्हीं हो सकती थी माँ”
“संवेदना की नम धरा पर” काव्यसंग्रह में क्या होग कवयित्री
ने अपनी अपनी व्यथा को कुछ इस प्रकार अपने शब्द दिये हैं-
“रसोई से बैठक तक
घर से स्कूल तक
रामायण से अखबार तक
मैंने कितनी आलोचनाओं का जहर पिया है
तुम क्या जानो!”
जहाँ तक मुझे ज्ञात है कवयित्री ने बहुत सारी छन्दबद्ध
रचनाएँ की हैं परन्तु “संवेदना
की नम धरा पर” काव्यसंकलन में साधना वैद ने छंदो को अपनी रचनाओं में अधिक महत्व न देकर भावों को ही प्रमुखता दी है और
सोद्देश्य लेखन के भाव को अपनी रचनाओं में हमेशा जिन्दा रखा है।
“कितना कसकर बाँधा था
उसने अपने मन की
इस गिरह को
कितना विश्वास था उसे कि
यह सात जन्मों तक भी
नहीं खुलेंगी!
लेकिन वक्त के फौलादी हाथ
कितने ताकतवर हैं
यह अनुमान वह
कहाँ लगा पाई!”
समाज में
व्याप्त हो रहे आडम्बरों और पूजा पद्धति पर भी करीने के साथ चोट करने में कवयित्री
ने अपनी सशक्त लेखनी को चलाया है-
“कहाँ-कहाँ ढूँढू तुझे
कितने जतन करूँ
किस रूप को ध्यान में धरूँ
किस नाम से पुकारूँ
मन्दिर, मस्जिद, गुरूद्वारा
किस दरकी कुण्डी खटखटाऊँ
किस पंडित किस मौलवी
किस गुरू के चरणों में
शीश झुकाऊँ
बता मेरे मौला
मैं कहाँ तुझे पाऊँ?”
जन्मदात्री माता
के प्रति कवयित्री ने अपनी वचनबद्धता व्यक्त करते हुए लिखा है-
“तुम मुझे संसार में
आने तो दो माँ
देख लेना
मैं सारे संसार के उजाले
तुम्हारी आँखों में भर दूँगी!”
छन्दबद्ध कृति
के काव्यसौष्ठव का अपना अनूठा ही स्थान होता है जिसका निर्वहन कवयित्री ने कुशलता
के साथ किया है-
“दे डाली थीं जीने को जब इतनी साँसें
जीने का भी कोई तो मकसद दे देते,
इन साँसों की पीर तुम्हें जो पहुँचा पाये
कोई तो ऐसा हमदम कासिद दे देते!”
“संवेदना की नम धरा पर” काव्यसंकलन को पढ़कर मैंने अनुभव किया है कि कवयित्री
साधना वैद ने भाषिक सौन्दर्य के अतिरिक्त कविता और शृंगार की सभी विशेषताओं का संग-साथ
लेकर जो निर्वहन किया है वह अत्यन्त सराहनीय है।
मुझे पूरा विश्वास है कि पाठक “संवेदना की नम धरा पर” काव्यसंकलन को पढ़कर अवश्य लाभान्वित होंगे और यह कृति समीक्षकों
की दृष्टि से भी उपादेय सिद्ध होगी।
“संवेदना की नम धरा पर” काव्यसंकलन को आप कवयित्री के पते
33/23, आदर्श नगर, रकाबगंज, आगरा (उ.प्र.) से प्राप्त
कर सकते हैं। इनका सम्पर्क नम्बर - 09319912798 तथा
E-Mail . sadhana.vaid@gmail.com है।
278 पृष्ठों की सजिल्द पुस्तक का मूल्य मात्र
रु. 225/- है।
दिनांकः 04-01-2016
धन्यवाद शास्त्री जी !
साधना वैद | ||||||||
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