हर रस्ता अपनी मंज़िल तक जाता है
मंज़िल की पहचान तुम्हें ही करना है !
लाख प्रलोभन बिखरे हों हर ओर मगर
सही लक्ष्य संधान तुम्हें ही करना है !
टूटे हैं परिवार सिसकती मानवता
हर रिश्ते का मान तुम्हें ही करना है !
सही ग़लत में बस थोड़ा ही अंतर है
इस अंतर का ध्यान तुम्हें ही करना है !
पहन मुखौटे दोस्त मिलेंगे दुश्मन भी
मित्रों की पहचान तुम्हें ही करना है !
अश्रु पोंछने को बहती इन आँखों के
निज सुख का बलिदान तुम्हें ही करना है !
जग को तम से मुक्त कराना यदि तुमको
तीक्ष्ण गरल का पान तुम्हें ही करना है !
छवि धूमिल हो कभी तनिक भी संसृति में
ऐसा कोई काम कभी ना करना है !
कन्धों पर है भार बहुत दायित्वों का
सबका बेड़ा पार तुम्हें ही करना है !
दिग्दिगंत में कीर्ति पताका लहराए
भारत का यशगान तुम्हें ही करना है !
साधना वैद
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