बावला है यह आइना
कुछ भी दिखाओ
उसी पर यकीन कर लेता
है !
सब कहते हैं
आइना कभी झूठ नहीं
बोलता,
आईने को कोई भी
बरगला नहीं सकता,
उससे कुछ भी छिपाना
असम्भव है !
किसी ज्ञानी संत
महात्मा
या किसी महान
दार्शनिक की
पदवी पर बैठा रखा है
सबने इसे !
लेकिन मुझे तो यह
अबोध बालक सा नादान
लगता है !
सच कहूँ तो इसे परख
ही नहीं है
सत्य और असत्य की,
मिथ्या और यथार्थ की,
कल्पना और हकीक़त की !
मैं दर्द से काँपते
अधरों पर
सायास मुस्कराहट ले
आऊँ
यह कह देता है कितनी
खुश हूँ मैं,
आँसुओं से डबडबाई
आँखों पर
रुपहला मस्कारा लगा लूँ
यह कह देता है मैं किसी
अप्सरा सी सुन्दर लग
रही हूँ
ज्वर से तपते रुग्ण
गालों पर
मैं थोड़ी सी रूज़ मल
दूँ
यह समझता है मेरे
गालों पर
यह स्वास्थ्य की
अरुणाई है !
बावला आइना कहाँ
फर्क कर पाता है
सच और झूठ में !
नन्हे भोले भाले
शिशु की तरह
यह भी नकली को ही
असली समझ बैठता है
और बहल जाता है
झूठी तस्वीरों से !
है ना सच बात !
साधना वैद
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