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Friday, August 17, 2018

कर दिया परिचित मुझे




है बड़ा उपकार तेरा
हम तो कुछ वाकिफ न थे
ज़िंदगी की तल्खियों से
हो गया परिचय मेरा !

कर दिया तूने मुझे परिचित
कठिन उस राह से
जिसमें केवल ठोकरें थीं,
कष्ट थे और शूल भी
कर लिए स्वीकार मैंने
जान कर तोहफा तेरा
वरना मेरी राह में
खुशियाँ भी थीं और फूल भी !

कर दिया तूने मुझे परिचित
विवश उस कैद से
जिसमें केवल दर्द था
आँसू भी थे और रंज भी
कर लिया स्वीकार पिंजरा
छोड़ कर नीला गगन  
   वरना उड़ने को बहुत था     
हौसला और पंख भी !

कर दिया तूने मुझे परिचित
व्यथा के नाम से
जहाँ थी पीड़ा सघन
बेनाम और बेआस सी,
कर लिया स्वीकार मैंने
इसको भी खामोश हो
वरना थी कोई कमी 
   ना हर्ष ना उल्लास की !  


साधना वैद





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