कितनी मासूम,
कितनी भोली,
कितनी प्यारी,
कितनी सुन्दर हो तुम
बिलकुल अमिया के टिकोरे सी !
खट्टी मीठी, कुरकुरी,
खुशबूदार और ताज़ी !
तुम्हारी चंचल बातें
मुझे अक्सर
हैरान कर जाती हैं !
मेरे अंतर को
आनंद से भर जाती हैं !
देर तक उनका स्वाद
मेरे मन मस्तिष्क को
उद्दीप्त रखता है !
कभी मुझे अपनी
शरारती खटास से
झकझोर जाता है
तो कभी अपनी
मधु सी मिठास से
मुग्ध कर जाता है !
इसीलिये हरदम मुझे
तुम्हारे सामीप्य की
चाहत होती है !
जैसे स्कूल के बच्चे
अमिया की आस में
आम के पेड़ों के
इर्द गिर्द मंडराते हैं
मेरा बावरा मन
तुमसे बतियाने की
चाहत में हर वक्त
तुम्हारे ही आस पास
मंडराता है !
तुम्हारी चंचल बातों के
अनोखे स्वाद में
डूब जाना चाहता है !
साधना वैद
मन की मिठास है इस रचना में
ReplyDeleteसुंदर
वाह!
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ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (20-04-2019) को "रिश्तों की चाय" (चर्चा अंक-3311) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
- अनीता सैनी
बचपन की याद दिलाती बहुत प्यारी रचना |
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत रचना...
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आपका वर्मा जी !
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद देवेन्द्र जी !
ReplyDeleteआपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार अनीता जी ! सप्रेम वन्दे !
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जीजी ! आभार आपका !
ReplyDeleteहृदय से बहुत बहुत धन्यवाद आपका कैलाश जी ! आभार !
ReplyDeleteआपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शिवम् जी !
ReplyDeleteवाह !बहुत सुन्दर आदरणीया दी जी
ReplyDeleteसादर
बेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद श्वेता जी ! आपका बहुत बहुत आभार सखी !
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अनीता जी! दिल से आभार !
ReplyDeleteअनुराधा जी आपका तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया !सप्रेम वन्दे !
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर...
हार्दिक धन्यवाद सुधा जी! आभार आपका !
ReplyDeleteख़ूबसूरत रचना...
ReplyDeleteअति उत्तम साधना जी
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