दूर क्षितिज पर भुवन भास्कर सागर की लोल लहरियों में जलसमाधि लेने के लिये अपना स्थान सुनिश्चित कर संसार को अंतिम अभिवादन करते विदा होने को तत्पर हैं ! सूर्यास्त के साथ ही अन्धकार त्वरित गति से अपना साम्राज्य विस्तृत करता जाता है ! जलनिधि की चंचल तरंगों के साथ अठखेलियाँ करती अवसान को उन्मुख रवि रश्मियों का सुनहरा, रुपहला, रक्तिम आवर्तन-प्रत्यावर्तन हृदय को स्पंदित कर गया है ! संध्या के आगमन के साथ ही पक्षी वृन्दों को चहचहाते हुए अपने बसेरों की तरफ लौटते देख मन अवसाद से भर उठा है ! क्यों मेरा मन इतना निसंग, एकाकी और उद्भ्रांत है ! अंधकार की गहनता के साथ ही नीरवता भी पल-पल बढ़ती जाती है ! दूर-दूर तक अब कहीं प्रकाश की कोई रेखा दिखाई नहीं देती ! बच्चों का कलरव भी मंद हो चला है ! कदाचित सभी अपने-अपने घरों को लौट गये हैं ! मैं भी अनमनी सी शिथिल कदमों से लौट आई हूँ अपने अंतर के निर्जन सूने एकांतवास में जहाँ रात के इस गहन सन्नाटे में कहीं से भी कोई आहट, कोई आवाज़ सुनाई नहीं देती कि मैं खुद के ज़िंदा होने का अहसास महसूस कर सकूँ ! पंछी भी मौन हो गये हैं ! इसी तरह निर्निमेष अन्धकार में छत की कड़ियों को घूरते कितने घण्टे बीत गये पता ही नहीं चला ! अब कुछ धुँधला सा भी दिखाई नहीं देता ! जैसे मैं किसी अंधकूप में गहरे और गहरे उतरती चली जा रही हूँ ! मेरी सभी इंद्रियाँ घनीभूत होकर सिर्फ कानों में केंद्रित हो गयी हैं ! हल्की सी सरसराहट को भी मैं अनुभव करना चाहती हूँ शायद कहीं कोई सूखा पीला पत्ता डाल से टूट कर भूमि पर गिरा हो, शायद किसी फूल से ओस की कोई बूँद ढुलक कर नीचे दूब पर गिरी हो, शायद किसी शाख पर किसी घोंसले में किसी गौरैया ने पंख फैला कर अपने नन्हे से चूजे को अपने अंक में समेटा हो, शायद किसी दीपक की लौ बुझने से पूर्व भरभरा कर प्रज्वलित हुई हो ! इस घनघोर अन्धकार और भयावह सन्नाटे में वह कौनसी आवाज़ है जिसे मैं सुनना चाहती हूँ मैं नहीं जानती लेकिन इतना ज़रूर जानती हूँ कि साँसों की धीमी होती रफ़्तार को गति तभी मिल सकेगी जब मुझे वह आवाज़ सुनाई दे जायेगी !
चित्र - गूगल से साभार
साधना वैद
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में " गुरूवार 12 सितम्बर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (13-09-2019) को "बनकर रहो विजेता" (चर्चा अंक- 3457) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये। --अनन्त चतुर्दशी कीहार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वंदे !
ReplyDeleteआपकी'सांध्य दैनिक मुखरित मौन'की प्रतिक्रिया पढ़ी कि आपको हायर सेकेंडरी की फेयरवेल पार्टी में टाइटल मिला था--'चिर सजग आँखें उनींदी जाग तुझको दूर जाना ।'...संकलन के शीर्षक के जरिए मैं आपको आपके उन स्वर्णिम दिनों की याद दिला पाई यह हर्ष का विषय है मेरे लिए. ..आप बेहद अच्छा लिखती हैं ।🙏🙏
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद मीना जी ! ये पंक्तियाँ मुझे अत्यंत प्रिय हैं ! इन्हें पढ़ कर अनायास ही अपने छात्र जीवन की अविस्मरणीय स्मृतियाँ मेरे मन में कौंधने लगीं और मैं उनका ज़िक्र कर बैठी ! आपका आभार उन्हें समझने के लिए !
ReplyDeleteसाधना जी,
ReplyDeleteआप आदरणीया महादेवी वर्मा की लेखन परंपरा की सशक्त प्रतिनिधि हैं. आप के गद्य-लेखन में भी कविता का आनन्द आता है.
इतने बड़े नाम के साथ मुझ जैसी अकिंचन रचनाकार का नाम ना जोड़ें गोपेश जी ! बहुत संकुचित और लज्जित अनुभव कर रही हूँ स्वयं को ! आपको मेरा लिखा अच्छा लगा हार्दिक प्रसन्नता हुई ! आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रया के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार !
Deleteआपकी लिखी रचना "पाँच लिंकों का आनन्द" के हम-क़दम के 88 वें अंक में सोमवार 16 सितंबर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteओह ! देखने में विलम्ब हुआ ! मेरा हार्दिक धन्यवाद एवं आभार स्वीकार करें रवीन्द्र जी ! सादर वन्दे !
Deleteख़ामोशी ख़ामोशी में ही कितनी बाते कह गई आप दी ,सादर नमन आपको
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद कामिनी जी ! आभार आपका !
Deleteलाजवाब बिम्बों से सजा शानदार लेख....
ReplyDeleteवाह!!!
हृदय से आपका बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार सुधा जी ! मेरा लेखन आपको अच्छा लगा मेरा श्रम सफल हुआ ! सप्रेम वन्दे !
Delete