अस्पतालों में पसरी
बदइन्तज़ामी
प्राणरक्षक दवाइयों
की किल्लत
और रोज़ मरने वालों
की बढ़ती तादाद,
इतनी परेशानियों के
बीच
बस एक ही सुखद खबर
कि मुझे
मुक्ति मिली चालीस
साल की कैद से
और लो हो गयी पूरी
मेरे मन की मुराद !
जाने कैसे और क्यों
केवल
दो तीन हफ़्तों के
लॉक डाउन से
यह इंसान हो जाता है
बेज़ार,
मुझे देखो मैं तो
चालीस साल से
कैद थी इस एक ही
शरीर में
कुछ भी देखने, कहीं
भी आने जाने,
या पल भर को भी कभी
इस शरीर से
बाहर निकलने से एकदम
लाचार !
आज मिली है आज़ादी इस
कैद से
तो मैं खूब जश्न
मनाउँगी
अपनी हर ख्वाहिश
पूरी करूँगी और
धरती, आकाश, नदी,
पहाड़
हर जगह घूमने जाउँगी
! “
आत्मा मृतक के शरीर
को छोड़
चल दी शहर की सैर पर
अस्पताल से दूर,
और देख कर हर गली हर
मोहल्ले में
पहाड़ से भी ऊँचे
कूड़ों के अम्बार,
मच्छरों और दुर्गन्ध
से भरी गंदी नालियाँ,
भर गया उसका मन घृणा
से
और लुभाने लगा उसे
आसमान का नूर !
आत्मा ने भरी ऊँची
सी उड़ान और
उड़ने लगी पल भर में वो
पंछियों के साथ
लेकिन ऊँचे आकाश में
पहुँच कर
उसका दम घुट रहा था,
धरती के तमाम कल
कारखानों और
अनगिनती वाहनों का
गाढ़ा गाढ़ा काला धुआँ
सारे वातावरण को
प्रदूषित कर रहा था !
दूर गगन से नहीं देख
पा रही थी वो
बर्फ से लदे खूबसूरत
पहाड़ और सुन्दर चाँद सितारे
न ही सुन्दर पंछी और
न ही धरती के नज़ारे !
धुएं और धूल मिट्टी
से लथपथ
क्लांत श्रांत आत्मा
अब स्वच्छ होना चाहती थी,
ऊब चुका था उसका मन
इस गंदी प्रदूषित दुनिया से
शुद्ध पानी से नहा
धोकर अब वह
अपने स्वर्ग के आवास
में सुकून से सोना चाहती थी !
पवित्र नदियाँ
जिनमें नहा कर मानव का
शरीर ही नहीं आत्मा
तक शुद्ध हो जाती है
बचपन से इन नदियों
की महिमा वह सुनती आई थी.
आज जब खुद को स्वच्छ
करने की इच्छा जागी
तो उसे इन्हीं
पवित्र नदियों की याद हो आई थी !
आत्मा ने आसमान से
सीधे डुबकी लगाई
गंगा जल में इस आशा
से कि वह
किसी विज्ञापन की
नायिका की तरह स्वच्छ सुन्दर हो
श्वेत हंसिनी सी
बाहर निकल कर आयेगी,
तन मन निर्मल और
शुद्ध हो जाएगा और फिर
पूर्णत: पवित्र हो वह
स्वर्ग की राह पर निकल जायेगी !
लेकिन जल को स्पर्श
करते ही
भय के मारे उसके कंठ
से चीख निकल गयी,
आत्मा नदी के पाट
में पसरी तमाम गन्दगी
और जल में प्रवाहित अनेक
शवों के
क्षत विक्षत अंगों
के बीच फँस गयी !
अब वह सच में घबराने
लगी थी !
ऐसी गंदी, इतनी
प्रदूषित दुनिया से तो
उसे अपनी चालीस साल
की
मानव शरीर की कैद ही
भाने लगी थी !
वह जान चुकी थी कि
नादान इंसान अपनी
भूलों से
पर्यावरण को कितना विषाक्त
बना रहा है,
और आने वाली पीढ़ियों
के लिये
गंभीर खतरों की नींव
रख रहा है !
जो प्रदूषण की यह
रफ़्तार नहीं रुकी तो
वर्तमान पर तो संकट
मंडरा ही रहा है
भविष्य भी चौपट हो
जाएगा,
फिर किसे दोष देगा
यह मूर्ख मानव
और किसे अपनी व्यथा
सुनाएगा !
साधना वैद
सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव |यथार्थ की सही अभिव्यक्ति |
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जीजी ! बहुत बहुत आभार !
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