शाम होते ही
बस्ती के सारे बच्चे खेलने के लिए आ जुटे ! आजकल उनका प्रिय खेल दुर्दांत आतंकियों
और देश की सुरक्षा में तैनात फौजियों का होता है ! कुछ बच्चे नकली दाढ़ी लगा आतंकी
बन जाते तो कुछ छोटी छोटी लाठियों को मशीनगन की तरह कंधे पर लाद फ़ौजी बन जाते और
खेल शुरू हो जाता आतंकियों और फौजियों के बीच लुका छिपी का !
‘निकलो घर से बाहर ! नहीं तो एक एक
को भून दिया जाएगा !” दरवाज़े
पर ज़ोर की ठोकर मार फ़ौजी घर में छिपे आतंकियों पर गरजा
!
तिरंगे कपड़े में
मुँह छिपाए एक बूढ़ा थर थर काँपता हुआ बाहर आया !
“हम तो इसी गाँव के हैं हुज़ूर आपको ग़लत
खबर मिली है ! हम आतंकी नहीं हैं !”
आतंकी के भेस में बूढ़ा गिड़गिड़ाया !
फ़ौजी तिरंगा खींच
कर जैसे ही ज़मीन पर फेंकने को हुआ आतंकी की भूमिका करने वाला रोहित ज़ोर से
चिल्लाया,
“पागल हो गया है क्या दीनू ! तिरंगा
ज़मीन पर फेंकेगा !” और झंडा हाथ में ऊँचा उठा ‘वन्दे मातरम्’ का जयकारा लगाते
हुए उसने दौड़ लगा दी ! फ़ौजी और आतंकी सारे बच्चे उसके पीछे पीछे ‘झंडा ऊँचा रहे
हमारा’ नारा लगाते हुए दौड़ पड़े !
साधना वैद
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा 16.09.2021 को चर्चा मंच पर होगी।
ReplyDeleteआप भी सादर आमंत्रित है।
धन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
हार्डक धन्यवाद दिलबाग जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 16 सितंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
हार्दिक धन्यवाद रवीन्द्र जी ! हृदय से आभार आपका ! सादर वन्दे !
Deleteवाह!
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद हर्षवर्धन जी ! बहुत बहुत आभार !
Deleteबेहतरीन लघु कथा
ReplyDeleteहृदय से धन्यवाद संगीता जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteउव्वाहहहहह..
ReplyDeleteखेल-खेल में
देश प्रेम...
सुंदर और संस्कारित गाँव
सादर..
हार्दिक धन्यवाद यशोदा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteवाह! बहुत ही शानदार लघुकथा!
ReplyDeleteदिल से आभार मनीषा जी ! लघुकथा आपको अच्छी लगी मेरा श्रम सफल हुआ !
Deleteसुप्रभात
ReplyDeleteउम्दा लधुकथा |
हार्दिक धन्यवाद जीजी ! बहुत बहुत आभार !
Deleteसुंदर रचना
ReplyDeleteसुंदर लघुकथा ।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जिज्ञासा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
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