प्री वेडिंग फोटो शूट का चलन अभी कुछ सालों से ही समाज में दिखाई देना शरू हुआ है ! समाज में इसके अलावा लिव इन रिलेशनशिप का चलन भी ज़ोर पकड़ रहा है ! ऐसी और भी कई आयातित परम्पराएं प्रथाएं चल रही हैं जिन्हें न तो धर्म ने मान्यता दी है, न क़ानून ने, न हमारी परम्पराओं ने और न ही घर परिवार के बड़े बुजुर्गों ने ! लेकिन व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के नाम पर वे भी परम्परावादी सोच के समानांतर चल ही रही हैं समाज उन्हें स्वीकारे या न स्वीकारे ! स्वयं को उदारवादी और आधुनिक कहने और समझने वाले लोग भी अपने घर की बहन बेटियों की बात आने पर पुरातन पंथी हो जायेंगे और उन्हें शादी से पूर्व लिव इन रिलेशनशिप में रहने की इजाज़त कतई नहीं देंगे ! वैसे आजकल अनुमति लेकर कौन काम करता है ! आज की युवा पीढी सोचती नहीं कर गुज़रती है फिर परिणाम जो भी हो ! आजकल जब शादी का बंधन काँच से भी अधिक नाज़ुक हो गया है तो प्री वेडिंग फोटो शूट का कोई अर्थ नहीं रह जाता ! आधुनिकता के नाम पर विवाह से पूर्व ही फ़िल्मी स्टाइल में फ़ोटोज़ खिंचवाना अजीब लगता है ! हमसे पहले वाली पीढ़ी को तो अपने जीवनसाथी का दर्शन ही शादी के बाद मिलता था ! हमारे ज़माने में विवाह पूर्व एक बार देखने दिखाने का सिलसिला आरम्भ हुआ ! अब तो विवाह से पहले ही युवक युवती इतनी स्वतन्त्रता लेने लगे हैं कि विवाह के बाद के रोमांच, उत्सुकता, कौतुहल, किसी भी बात के लिए गुंजाइश ही बाकी नहीं रह जाती और अगर यह विवाह असफल हो गया या रिश्ता होने से पहले ही टूट गया तो प्री वेडिंग फोटो शूट के वही फ़ोटोज़ जीवन भर के लिए मन के संताप को बढ़ाते हैं ! मेरी नज़र में यह एक व्यर्थ की कवायद है ! विवाह के बंधन में बँध जाने के बाद ही यह सब अच्छा लगता है ! पाश्चात्य समाज की परम्पराओं और फ़िल्मी कलाकारों की नक़ल न ही की जाए तो बेहतर है ! भारतीय समाज में मध्यम वर्ग से ही मर्यादित आचरण और संस्कार संस्कृति के संरक्षण और उनकी महत्ता के निर्वहन की अपेक्षा की जाती है !
मुझे तो इस प्री वेडिंग फोटो शूट की काॅन्सेप्ट ही पसंद नहीं है ! यह भी औरों की देखा देखी होड़ में फिजूलखर्ची को बढ़ाने का एक व्यर्थ का उपक्रम है ! शादियों में सादगी हो और खर्च कम किये जाएँ वही सबके हित में होता है ! कुछ पैसे वाले धनी लोग जो आये दिन विदेश जाते रहते हैं और पाश्चात्य जीवन शैली को पसंद करते हैं वे अपने यहाँ की शादियों में ऐसी परम्पराओं का पालन करके समाज को गलत सन्देश देते हैं ! पहले शादी एक पवित्र अनुष्ठान होता था जो सादगी के साथ धार्मिक रीति रिवाजों के साथ सादगी से संपन्न किया जाता था और पति पत्नी इसे सात जन्मों का बंधन मान पूरी निष्ठा और समर्पण से इसे आजीवन निभाते थे ! पहले बिलकुल सादी सी पीली पछिया पहन कर कन्या की सप्तपदी हो जाती थी ! अब हज़ारों लाखों रुपये तो दूल्हा दुलहन के कपड़ों और गहनों में खर्च हो जाते हैं ! उस पर इस प्रकार की प्री वेडिंग फोटो शूट की परम्पराओं ने माता पिता को मानसिक उधेड़बुन में तो डाला ही है उनके बजट पर भी बुरा असर डाला है ! विवाह के नाम पर आडम्बर और दिखावे में जितनी फिजूलखर्ची होती है उसे किसी भी प्रकार से उचित नहीं ठहराया जा सकता ! एक दोस्त फोटो शूट के लिए विदेश गया है तो दूसरे को भी वहीं जाने की इच्छा होगी आमदनी चाहे दोस्त से आधी हो ! शान को बट्टा न लग जाए कहीं ! फिर तस्वीरें खिंचवाते समय प्रस्तावित युगल कितनी स्वतन्त्रता ले लेते हैं उस पर नियंत्रण कौन रखेगा ! कई बार शादी की फ़ोटोज़ और वीडियो देखने के दौरान घर के बड़े बूढ़े लज्जित से होकर कमरे से बाहर चले जाते हैं ! यहाँ मर्यादा की सीमा रेखा कौन तय करेगा ? और क्या सभी लोगों की सोच और आचरण एक सा ही होता है ? और ज़रा सोचिये आजकल रिश्ते ज़रा ज़रा सी बात पर टूट जाते हैं ! प्री वेडिंग फोटो शूट के बाद दोनों परिवारों में किसी बात पर अनबन या असहमति हो गयी और रिश्ता विवाह होने से पूर्व ही टूट गया तो इन फ़ोटोज़ को लेकर दोनों ही बच्चे कितने असहज और शर्मिन्दा से रहेंगे और फिर नकारात्मक प्रवृत्ति के लोग इन तस्वीरों का उपयोग लड़का लड़की को बदनाम या ब्लैकमेल करने के लिए भी कर सकते हैं !
मेरे विचार से इन विदेशी परम्पराओं और रीतियों से हमारे समाज को और हमारे बच्चों को बचना चाहिए ! कुछ बातें बहुत ही निजी और अन्तरंग होती हैं उनका प्रदर्शन सबके सामने किया जाए यह कतई ज़रूरी नहीं होता !
बच्चों को भी समझना चाहिए ! शादी करने जा रहे हैं ! दूध पीते बच्चे नहीं है ! फिजूलखर्ची करके कंगाल बन जाएँ यह कहाँ की समझदारी है ! समाज में जागरूकता लाने के लिए, शादी ब्याह में व्यर्थ के आडम्बरों में फिजूलखर्ची को बंद कराने के लिए प्रयत्न तो करने ही होंगे ! शादी दो व्यक्तियों को जीवन भर के लिए एक दूसरे से जोड़ती है ! यह बिना दिखावे, शोर शराबे और आडम्बर के जितनी सादगी से संपन्न हो वही सबके हित में है ! इसलिए जो चीज़ें गैर ज़रूरी हैं उन्हें छोड़ देना ही उचित है ! वरना फिजूलखर्ची की होड़ में लग गए तो उसका तो कहीं अंत ही नहीं है !
साधना वैद
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (14-01-2022 ) को 'सुधरेगा परिवेश अब, सबको यह विश्वास' (चर्चा अंक 4309) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
हार्दिक धन्यवाद रवीन्द्र जी ! आपका बहुत बहुत आभार ! सादर वन्दे !
Deleteबहुत ही उम्दा सार्थक आलेख!
ReplyDeleteएक एक शब्द सटीक और सार्थक है🙏
इस बेहतरीन आलेख के लिए आपका तहेदिल आभार 🙏
लिव इन रिलेशनशिप में रहना जिस्म की चाहत को दर्शाता है जो कि प्यार जैसे पवित्र शब्द को कलंकित करता है!
आपने बिल्कुल सही कहा अपनी प्री वेडिंग फोटोशूट यह सब फिजूलखर्च ही है और कुछ नहीं!पहले शादी हो रही होती थी इसलिए लोग फोटो खिंचवा लेते थे पर अब की शादी देखकर लगता है कि लोग फोटो खिंचवाने के लिए शादी करते हैं! शादी से पूर्व लिव इन रिलेशन में रहना अपने पैरों पे कुल्हाड़ी मारने जैसा है! अगर शादी किसी कारणवश नहीं हो पाती है तो इसका परिणाम क्या होगा ऐसा करने से पहले सोच लेना चाहिए!
हार्दिक धन्यवाद मनीषा जी ! मेरे विचारों को आपने सहमति प्रदान की मेरा मन मगन हुआ ! आपका बहुत बहुत आभार !
Deleteबहुत सही लिखा है |आज कल आधुनिकता बहुत फैली है |
ReplyDeleteविचारणीय आलेख।
ReplyDeleteदिल से धन्यवाद ज्योति जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteसार्थक पोस्ट
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