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Friday, April 8, 2022

रामनवमी

 



चैत्र का महीना

यही समय तो बताया था ना

राजवैद्य ने तुम्हारे शुभागमन के लिए !

अपने अंतर के सारे द्वार खोल

मैं आतुर हो उठी हूँ तुम्हारे स्वागत के लिए

तुम्हें अपनी चिर तृषित बाहों में

झुलाने के लिए

तुम्हें अपने हृदय से लगा

जी भर कर दुलारने के लिए ! 

तुम्हारी आहट एकाग्रचित्त हो

सुन रही हूँ मन प्राण से जैसे

मेरी सारी इन्द्रियाँ केन्द्रित हो गयी हैं

मेरी श्रवणेद्रियों में ही !

अब एक एक पल भारी हुआ जाता है

आ जाओ ना मेरे हृदयांश !

आलोकित कर दो इस राजमहल को

अपने तेजोमय प्रकाश से,

पुलकित कर दो हर हृदय को

अपनी उज्जवल मुस्कान से,

आल्हादित कर दो

अपनी चिर तृषित माँ को

उसके कंठ में अपने भुजहार डाल कर

चैत्र मास की यह अवधि कहीं

तुम्हारी प्रतीक्षा में ही बीत न जाए

मेरे हृदयांश !

अयोध्या का सूर्य अब

उदित होना ही चाहता है !



साधना वैद

 


9 comments :

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (09-04-2022) को चर्चा मंच       "हे कवि! तुमने कुछ नहीं देखा?"  (चर्चा अंक-4395)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

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    1. आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !

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  2. बहुत सुंदर

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  3. मोतियन चौक पुराओ री माई रंगमहल में ।
    भावभीनी रचना और रामनवमी की बधाई !

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    1. हार्दिक धन्यवाद नूपुरम जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  4. सुप्रभात
    भाव पूर्ण अभिव्यक्ति |

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  5. बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति🌷🌷

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    1. स्वागत है डॉ. विभा ! आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार !

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