“ब्रेन ड्रेन का प्रसंग उठा कर आप क्या प्रूव करना चाहती हैं माँ, यू एस में मिले इतनी बड़ी मल्टी नेशनल कंपनी के
प्रस्ताव को ठुकरा देना सही होगा ? क्या उसकी जगह देश में ही किसी छोटी मोटी कंपनी
में कामचलाऊ वेतन के साथ समझौता करके अपनी योग्यता और प्रतिभा को हाशिये पर सरका
मुझे भी यहाँ के हताश लोगों की कम्यूनिटी का हिस्सा बन जाना चाहिए ?” गौरव के सवाल
की गूँज जैसे हर पल के साथ बढ़ती जा रही थी !
माँ खामोश थी ! आँखों के
सामने कई खूब सम्पन्न मित्रों, परिचितों, नाते रिश्तेदारों के चहरे घूम गए जो
विदेशों में बसे अपने होनहार प्रतिभाशाली बच्चों को अंतिम बार देख लेने की साध मन
में लिए ही चिर निंद्रा में सो गए ! अंतिम दिनों में न उनसे मिल पाए, न उन्हें देख
पाए, न उनकी सेवा सत्कार का सुख ही उठा पाए ! एक सवाल उसके मौन अधरों में भी घुट रहा
था, “इतने योग्य इतने प्रतिभाशाली
बच्चों के माता पिता को बुढ़ापे में अस्वस्थ असहाय हो जाने पर अपनी वृद्धावस्था किसी
वृद्धाश्रम या किसी अस्पताल में नितांत अजनबी
लोगों के बीच काटने के लिये विवश हो जाना ही क्या उनकी नियति है ? या तो वे अपने खाली घरों में एकाकी गुमनामी में मरें या
वृद्धाश्रमों में अपरिचितों के हाथों पंचतत्व में विलीन हों !”
साधना वैद
रोज़गार की तलाश में नौजवान घर से और देश से, बाहर तो निकलेंगे ही.
ReplyDeleteलायक प्रवासी भारतीय परदेस में रह कर भी अपने माँ-बाप का ख़याल रखते हैं और नालायक औलाद तो चाहे घर में रहे या फिर बाहर रहे, उसे माँ-बाप की फ़िक्र ही कहाँ होती है?
जी ! आपसे सौ प्रतिशत सहमत हूँ ! बस दूरी इतनी है कि स्थिति की गंभीरता को समझते हुए और आते आते अक्सर बहुत देर हो जाती है ! सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार गोपेश जी !
Deleteविदेश जाने की ललक बच्चों को माँ बाप से दूर तो कर ही रही है । और वाकई अपनों के बिना दम तोड़ते माँ बाप तरसकर ही रह जाते हैं बहुत ही हृदयस्पर्शी कहानी।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद सुधा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteमाता पिता की दृष्टि से विचारणीय कथा है लेकिन बच्चों की दृष्टि से भी सोचना ही पड़ता है । दिल की दूरी न हो बाकी दूरी तो बर्दाश्त की जा सकती है ।
ReplyDeleteजी संगीता जी ! बहुत बहुत आभार सार्थक प्रतिक्रिया के लिए लेकिन लाख दिलों में कितना भी प्यार हो माता पिता की आँखें अंत समय में अपने बच्चों को साक्षात सामने देखना चाहती हैं !
Delete
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(३०-०९ -२०२२ ) को 'साथ तुम मझधार में मत छोड़ देना' (चर्चा-अंक -४५६८) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
आपका ह्रदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार अनीता जी ! सप्रेम वन्दे !
Deleteहृदयस्पर्शी लघुकथा
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद ओंकार जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteबहुत ही सार्थक प्रश्न उठाती प्रासंगिक लघुकथा ।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जिज्ञासा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Delete