काश बनाने वाले ने मुझे किताब बनाया होता
प्यार से उसने मेरा हर लफ्ज़ लब से छुआया होता !
मिलते जो कभी फूलों की शक्लों में प्यार के
तोहफे
मेरे पन्नों के बीच उसने गुलाबों को दबाया होता
!
उसके हर दर्द की हर दुःख की दवा थी मेरी
तहरीरों में
बना के काढ़ा दुआओं का उसे मैंने पिलाया होता !
देने को बेकलों का सन्देश खतों के ज़रिये
बनके कासिद मैंने बिछड़ों को मिलाया होता !
मेरे हर चिपके हुए वर्क को जब वो खोलती
अपनी लम्बी पतली
गीली ऊँगली से
मैंने अपने हर
सफे को और भी कस के
एक दूजे से चिपकाया होता !
मेरे पन्नों के बीच दबे साजन के
उस बेहद प्रतीक्षित ख़त
को पढ़ कर
उसने बेसाख्ता मुझे चूम अपने
धड़कते हुए सीने
से लगाया होता !
काश बनाने वाले ने मुझे किताब बनाया होता
प्यार से उसने मेरा हर लफ्ज़ लब से छुआया होता !
साधना वैद
बहुत सुन्दर भाव लिए रचना
ReplyDeleteवाह ! हार्दिक धन्यवाद जीजी ! बहुत बहुत आभार आपका !
ReplyDeleteवाह बेहतरीन अभिव्यक्ति शानदार रचना के लिए बधाई
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अभिलाषा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteकिताब बनने की अभिलाषा बड़ी अच्छी लगी ....
ReplyDeleteस्वागत है कविता जी ! आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार !
Deleteआपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार आदरणीय शास्त्री जी ! सादर वन्दे !
ReplyDeleteवाह दीदी. अलग ही प्यारा सा भाव लोक समाया है सुन्दर गीत
ReplyDeleteअरे वाह गिरिजा जी ! हार्दिक स्वागत है आपका ! बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार !
Deleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
DeleteNice post
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