नौ मई – दिल्ली से गुवाहाटी, गुवाहाटी से चेरापूँजी
रात के तीन बजे होली डे इन होटल से चेक आउट किया और कैब से हम इंदिरा गाँधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट के लिए रवाना हो गए ! समय से एयरपोर्ट पहुँच गए ! यहाँ थोड़ी सी समस्या का सामना करना पड़ा ! हमारे पास हमारे टिकिट्स की कोई हार्ड कॉपी या प्रिंट आउट नहीं था ! मात्र वही सूचना और टिकिट्स थे जो बुकिंग के बाद संतोष जी ने हमारे पास फोन के द्वारा भेजे थे ! प्रवेश द्वार पर जब हमने अपना फोन दिखाया तो वहाँ तैनात ड्यूटी ऑफीसर ने हमें पूरा टिकिट दिखाने के लिए कहा ! हमने बताया कि हमारे पास तो यही है तो उसने हमें इंडिगो के काउंटर से इनके प्रिंट आउट निकलवा कर लाने के लिए कहा ! हम गेट न. 4 पर थे और इंडिगो का काउंटर एयर पोर्ट के बिलकुल एक कोने में था ! राजन, मेरे पतिदेव, की पीठ में दर्द था ! मेरे भी घुटनों में तकलीफ थी ! उस समय तो उसका फरमान बिलकुल ऐसा लगा जैसे किसीने हिमालय पर चढ़ने के लिए कह दिया हो ! लेकिन और कोई चारा भी तो नहीं था ! सामान की ट्रॉली धकेलते हुए इंडिगो के काउंटर पर पहुँचे ! वहाँ जो सज्जन काउंटर पर थे वे बहुत ही हेल्पिंग थे ! उन्होंने तुरंत हमारे टिकिट्स के प्रिंट आउट निकाल कर दे दिए ! हमने लौटने वाली यात्रा के प्रिंट आउट भी उनसे उसी वक्त निकलवा लिए ! जिससे लौटने वाले दिन फिर से यही कवायद न दोहरानी पड़े ! इस सारी प्रक्रिया में बहुत देर लग गयी ! लेकिन उस भले आदमी ने हमारी उम्र और डॉक्टर का रेकमेंडेशन लेटर देख कर हमारे लिए तुरंत ही व्हील चेयर्स की व्यवस्था कर दी ! उसके बाद सब कुछ बहुत आसान हो गया ! सामान इत्यादि के चेक इन कराने की ज़िम्मेदारी हमारे अटेंडेंट ने सम्हाल ली ! हमें कुछ नहीं करना पड़ा ! हमारे बैग्स चेक इन करवा कर, सीक्योरिटी चेक की औपचारिकताओं से हमें निकलवा कर चार सवा चार बजे तक बोर्डिंग लाउंज में हमें पहुँचा कर हमारे व्हील चेयर के अटेंडेंट्स हमें बाय बाय कर चले गए ! राजन ने उन्हें विदा कर दिया ! जबकि उनकी ड्यूटी हमें हवाई जहाज की सीट तक ले जाकर बैठाने की होती है ! खैर कोई बात नहीं ! दरअसल यह पहला अवसर था कि हम लोगों ने व्हील चेयर की सुविधा का उपयोग किया था ! इसके पूर्व देश विदेश की कई यात्राएं कर चुके थे लेकिन कभी व्हील चेयर पर नहीं बैठे ! इसलिए शायद उनका मन इस बात को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं था कि हम अब फिजीकली इतने फिट नहीं रहे !
बोर्डिंग लाउंज में हमारे इस खूबसूरत सफ़र के बाकी हमसफ़र भी प्रसन्न चित्त हँसते बतियाते चाय कॉफ़ी की चुस्कियाँ लेते हुए मिल गए ! देहरादून से विद्या सिंह जी, शोलापुर से प्रमिला वर्मा जी, भोपाल से संतोष श्रीवास्तव जी और अंजना श्रीवास्तव जी, दिल्ली से रचना पंडया जी और प्रमिला जी की बेटी यामिनी श्रीवास्तव जी सबसे मिल कर बहुत अच्छा लग रहा था ! हमारे ग्रुप में विभिन्न आयु वर्ग के लोग थे लेकिन एक बात तय थी कि जोश, उत्साह और ऊर्जा में सब किसी भी टीन एजर से कम न थे और आने वाले सफ़र के लिए सब समान रूप से उल्लसित उत्साहित थे !
अंतत: प्रतीक्षा की घड़ियाँ समाप्त हुईं और सही वक्त पर हम दिल्ली से इंडिगो एयरलाइन के विमान में सवार हुए और सही वक्त पर गुवाहाटी के लोकप्रिय गोपीनाथ बोरडोलोई हवाई अड्डे पर उतर गए ! असम प्रदेश का एक महत्वपूर्ण शहर है गुवाहाटी ! यहाँ का एयरपोर्ट छोटा सा है लेकिन सुन्दर और साफ़ सुथरा है ! कन्वेयर बेल्ट से अपना सामान लेकर जल्दी ही एयरपोर्ट से हम बाहर निकल आये ! हमें यहीं से मिनी बस के द्वारा रास्ते के सुन्दर पर्यटन स्थलों को देखते हुए मेघालय प्रदेश के चेरापूँजी तक जाना था ! नौ तारीख की रात हमें चेरापूँजी के बेहद खूबसूरत रिसोर्ट में गुज़ारनी थी जहाँ पहले से ही हम लोगों के लिए कमरे बुक हो चुके थे ! हम लोग जल्दी ही इस यात्रा पर निकलना चाह रहे थे लेकिन हमारी बस पता नहीं क्यों लेट हो रही थी ! हम सब एयरपोर्ट के बाहर बस की प्रतीक्षा में बैठे हुए थे ! आगे की यात्रा से पूर्व सबको नाश्ता भी करना था क्योंकि फ्लाइट में कुछ न खाने की वजह से सबको इस समय तक जम के भूख भी लग आई थी ! बस के आते ही सबके चेहरों पर बत्तीस इंच की मुस्कराहट फ़ैल गयी ! हमारे बस के चालक और सहचालक दोनों बहुत ही भले और विनम्र खासी नौजवान थे जिनके नाम थे दुद्दू और दिन्तू ! दिन्तू हमारी मिनी बस के चालक थे और बस को पहाड़ी रास्तों पर चलाने में बहुत ही निपुण थे और दुद्दू बहुत ही हँसमुख, मिलनसार और मददगार प्रवृत्ति के इंसान थे जो कंडक्टर के रूप में इस बस पर नियुक्त थे ! जितने दिन हमारे साथ रहे दोनों ने हम सभी की छोटी से छोटी ज़रुरत का बहुत ही अच्छी तरह से ध्यान रखा और हर संभव हमारी सहायता की ! उन्होंने हम सीनियर सदस्यों के लिए जंगल से बाँस काट कर बहुत ही बढ़िया लाठियाँ बना कर दीं जो पूरे सफ़र में हमारे बहुत काम आईं ! अगर बाँस की यह लाठी हमारे पास नहीं होती तो लिविंग रूट ब्रिज तक पहुँचने की तो हम कल्पना भी नहीं कर सकते थे ! इसका किस्सा उचित समय पर सुनायेंगे न आपको ज़रा धैर्य रखिये !
किसी भी जगह के आम नागरिकों का स्वभाव और आचरण देख कर हम इस बात का अनुमान लगा सकते हैं कि यहाँ के लोग किस तरह के होंगे तो मेरा और मेरे पतिदेव दोनों का यही मत है कि आसाम और मेघालय के लोग बहुत ही सरल और मिष्टभाषी हैं और ये अपने पकृति से जुड़े सीधे शांत एवं सरल जीवन से बहुत संतुष्ट और सुखी हैं ! इन्हें अपनी प्राकृतिक संपदा और समृद्धि पर बहुत नाज़ है !
जैसे ही हम सब बस में सवार हुए हमारा गुवाहाटी का पहला स्पॉट एक छोटा सा रेस्टोरेंट था जहाँ सबने छोले और पराँठे का जम कर ब्रंच लिया ! इस रेस्टोरेंट का नाम था आहार रेस्टोरेंट ! शोकेस में कई प्रकार की मिठाइयाँ व नमकीन इत्यादि भी बिक रहे थे ! यहाँ दीवार पर लगा हुआ मेन्यू हमारा ध्यान आकर्षित कर रहा था तो मैंने उसकी भी एक फोटो ले ली ! एक प्यारी सी युवा लड़की हम सबको अटेंड कर रही थी जो शायद उस रेस्टोरेंट की मालकिन भी थी ! बहुत अच्छा लग रहा था उसका आत्मविश्वास देख कर ! पराँठे ठीक थे लेकिन छोले बिलकुल बेस्वाद और फीके थे ! मन कर रहा था किचिन में जाकर उसे बता आऊँ कैसे बनाते हैं ढंग के छोले ! लेकिन कहते हैं ना भूख लगने पर किवाड़ भी पापड़ लगते हैं ! बिना हीले हवाले के हम सबने बड़े प्रसन्न भाव से इस नाश्ते का आनंद लिया ! मंज़िल दूर थी और हमें रास्ते में कई सुन्दर झीलों और झरनों को देखते हुए जाना था इसलिए बिना समय नष्ट किये हुए भरपेट नाश्ता करके हम आगे की यात्रा के लिए चल पड़े !
रास्ते में हाईवे के किनारे बड़ी खूबसूरती से सजी हुई फलों की अनेकों दुकाने दिखाई दीं ! उनमें बहुत ही बढ़िया बेमिसाल रसीले फल सजे हुए रखे थे ! बड़े बड़े टोकरों में आलूचे, प्लम, अंगूर इत्यादि रखे हुए थे ! केले तो इतनी खूबसूरती से सजे हुए थे कि उन्हें देख कर मन मुग्ध हो गया ! हमारे यहाँ कैसे ढेर बना कर ठेलों पर या बोरों पर रख कर फल वाले केलों को बेचते हैं ! कई बार तो अपने वज़न से ही दब कर केले खराब और पिलपिले हो जाते हैं ! लेकिन वहाँ केले ज़मीन पर या टोकरों में नहीं रखे हुए थे बल्कि बड़े करीने से दूकान में रस्सी के सहारे केले के गुच्छों को टाँग कर रखा गया था जिससे सभी केलों को पर्याप्त हवा भी मिल रही थी और कोई भी केला काला या पिलपिला नहीं दिख रहा था ! वहाँ कमल के फूल की कलियाँ भी फलों की दुकानों पर बहुतायत में मिल रही थीं जो दूर से देखने में बड़े साइज़ के भुट्टे जैसी लग रही थीं ! इनकी भी बहुत स्वादिष्ट सब्जी बनती है ! फलों का साइज़ देख कर हम हैरान थे और केले तो इतने स्वादिष्ट थे कि क्या कहें ! आगरा लौट कर आने के बाद केले खाने का मन ही नहीं हुआ ! चलिए आज की पोस्ट यहीं तक ! अगली पोस्ट में आपको अपने साथ ले चलूँगी कुछ बहुत ही सुन्दर पर्यटन स्थलों पर जहाँ के दिलकश नजारों से आपकी नज़रें हटना ही नहीं चाहेंगी ! तो आज इजाज़त दीजिये ! अगली पोस्ट में चलते हैं मेघालय की खूबसूरत वादियों की सैर पर ! तैयार रहिएगा !
फिलहाल शुभ रात्रि !
साधना वैद
बहुत सुंदर
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद ओंकार जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteखूबसूरत यात्रा वृतांत। एक करेक्शन है। असम की राजधानी आपने दिसपुर की जगह गुवहाटी लिख दिया है।
ReplyDeleteमेरी भूल को सुधारने के लिए आपका बहुत बहुत आभार नीतीश जी ! अभी सुधार लेती हूँ पोस्ट एडिट में जाकर ! दिल से धन्यवाद आपका !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिखा है |बढ़िया अभिव्यक्ति का है प्रयास
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद जीजी ! दिल से आभार !
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