धरा पुकारे,
चीख कर सुन ले, पागल गाँव
बंद करो ना,
छीनना मनहर, शीतल छाँव !
तप्त ज़मीं थी, रो पड़े खग जन, कर धिक्कार
अब तो रोको,
मूर्खजन अपना, दुर्व्यवहार !
बरस रही, है
झूम के शीतल, मंद फुहार
चलती देखो, घूम के सुरभित, मस्त बयार !
चितवन से, घायल
करे अरु, स्मित से घात
अँखियन से, सब
दुःख हरे दे, बातों से मात !
परम पिता, करुणा
तेरी की है, हमको आस,
बुझ जायेगी, शरण
में व्याकुल, मन की प्यास !
साधना वैद
बेहतरीन
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद ओंकार जी ! आभार आपका !
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