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Friday, March 5, 2010

बुक बुक बुक दरवाज़ा खोलो ( बाल कथा ) - 6

एक बकरी थी ! वह अपने चार बच्चों के साथ एक छोटे से घर में रहती थी ! उसका घर एक जंगल में था ! उसी जंगल में एक दुष्ट भेड़िया भी रहता था ! भेड़िया बकरी के बच्चों को खाना चाहता था और उसके लिये हर समय मौके की फिराक में रहता था ! एक दिन बकरी को घर का सामान खरीदने के लिये घर से बाहर जाने की ज़रूरत हुई ! उसने अपने बच्चों को समझाया ,
” बच्चों मैं ज़रूरी काम से बाहर जा रही हूँ ! जल्दी ही लौट आउँगी ! तुम्हारे लिये नरम नरम हरी हरी घास भी लेकर आउँगी ! मेरे जाने के बाद तुम दरवाज़ा अन्दर से बंद कर लेना ! कोई भी आवाज़ दे तुम दरवाज़ा मत खोलना ! जब मैं आउँगी तब दरवाज़ा खटखटा कर बोलूँगी ,
'बुक बुक बुक दरवाज़ा खोलो
हरी घास लेकर मैं आई ! '
मेरी आवाज़ सुन कर तुम दरवाज़ा खोल देना ! “
बकरी का सबसे छोटा बच्चा सबसे होशियार था ! बकरी ने उसे सब बच्चों का ख्याल रखने की ज़िम्मेदारी सौंपी और घर से बाहर चली गयी ! छोटे बच्चे ने दरवाज़ा अन्दर से अच्छी तरह से बंद कर लिया और सब बच्चों से बोला,
” हम सब घर के अन्दर ही खेलेंगे ! कोई भी घर से बाहर नहीं जायेगा ! “
बकरी को अकेले जाते हुए दुष्ट भेड़िये ने देख लिया ! वह सोचने लगा आज तो बच्चे ज़रूर घर में अकेले होंगे ! वह सीधा भाग कर बकरी के घर पहुँचा और दरवाज़ा खटखटाने लगा ! तीनों बड़े बच्चे बोले,
“ माँ आ गई माँ आ गई ! “
लेकिन छोटा बच्चा बोला ,” बिल्कुल नहीं यह माँ नहीं हो सकती क्योंकि माँ ने तो कहा था वह बोलेगी
’ बुक बुक बुक दरवाज़ा खोलो
हरी घास लेकर मैं आई ! ‘
भेड़िये ने बच्चों की सारी बातें सुन लीं और उस वक़्त तो लौट गया लेकिन थोड़ी देर बाद फिर से वापिस आया ! और ज़ोर ज़ोर से दरवाज़ा पीट कर अपनी भारी आवाज़ में कहने लगा ,
”बुक बुक बुक दरवाज़ा खोलो
हरी घास लेकर मैं आई !”
तीनों बड़े बच्चे फिर भाग कर दरवाज़े के पास पहुँचे और कहने लगे ,” अब तो माँ आ गयी ! “
लेकिन छोटा बच्चा फिर बोला ,” ठहरो ! अभी भी कुछ गड़बड़ लगती है ! माँ की आवाज़ इतनी भारी कैसे हो गई ! उसकी आवाज़ तो बहुत पतली और मीठी है ! “
बाकी बच्चे भी बोले ,” हाँ यह बात तो है ! “ और उन्होंने दरवाज़ा नहीं खोला !
भेड़िया खिसिया कर फिर से वापिस लौट गया और सोचने लगा कि अब क्या तरकीब लगाऊँ ! सोचता हुआ वह जंगल के पास वाले गाँव के डॉक्टर की दुकान पर पहुँचा और उनसे बोला,” डॉक्टर साहेब कोई ऐसी दवा दे दीजिये जिससे मेरी आवाज़ पतली हो जाये ! “
डॉक्टर ने पूछा ,” ऐसा क्यों चाहते हो ? “
भेड़िया बोला ,” मेरी भारी आवाज़ अच्छी नहीं लगती है 1 “
डॉक्टर ने कहा ,” ठीक है ! “ और उसे ऐसी दवा दे दी जिससे भेड़िये की आवाज़ कुछ पतली हो गयी !
भेड़िया लपक कर फिर बकरी के दरवाज़े पर पहुँचा और दरवाज़ा पीट पीट कर पतली आवाज़ बना कर बोला ,
”बुक बुक बुक दरवाज़ा खोलो
हरी घास लेकर मैं आई ! “
बच्चे भागे भागे फिर से दरवाज़ा खोलने के लिये आगे आये लेकिन छोटा बच्चा फिर बोला ,” ठहरो ! सब कुछ ठीक नहीं लगता ! कुछ गड़बड़ ज़रूर है ! माँ के पैर तो पतले पतले हैं ! वह तो दरवाज़ा धीमे धीमे खटखटाती हैं यह तो कोई ज़ोर ज़ोर से धप धप करके दरवाज़ा पीट रहा है ! हम दरवाज़ा नहीं खोलेंगे !”
यह सुन कर भेड़िया फिर वहाँ से भाग गया और बैठ कर सोचने लगा कि अब क्या तिकड़म लगाउँ क़ि बच्चे मेरे झाँसे में आ जायें ! तभी उसे एक तरकीब सूझी ! और उसने अपने एक हाथ पर रूई रख कर पट्टी बाँध ली जैसे चोट लगने पर बाँध लेते हैं और फिर जा पहुँचा बकरी के घर के दरवाज़े पर ! इस बार उसने अपनी आवाज़ पतली कर और पट्टी बँधे हाथ से दरवाज़ा खटखटा कर कहा,
”बुक बुक दरवाज़ा खोलो !
हरी घास लेकर मैं आई ! “
बच्चों ने चौंक कर छोटे बच्चे से पूछा ,” अब क्या लगता है ? यह माँ है कि नहीं ? “
इस बार छोटा बच्चा भी बोला , “ यह तो सचमुच माँ ही लगती है ! “ और बच्चों ने दरवाज़ा खोल दिया !
भेड़िया तेज़ी से झपटा और चारों बच्चों को पकड़ कर घप से निगल गया ! दरवाज़ा खुला छोड़ वह भाग कर नदी के पास पहुँचा और पानी पीकर वहीं रेत पर सो गया ! कुछ देर में बकरी अपना काम खत्म करके बच्चों के लिये हरी हरी घास लेकर घर लौटी ! दरवाज़ा खुला देख वह सन्न रह गयी ! बच्चों को आवाज़ देती हुई वह अन्दर भागी ! लेकिन बच्चे तो वहाँ थे ही नहीं ! वह रोती हुई बच्चों को घर के आस पास खोजने लगी ! उसको भेड़िये पर शक हुआ ! उसे पता था कि दोपहर के वक़्त भेड़िया अक्सर नदी के किनारे ही आराम करता हुआ मिलता है ! वह सीधे वहीं पहुँची ! भेड़िया ज़ोर ज़ोर से खर्राटे लेकर सो रहा था और उसका पेट खूब फूला हुआ था ! बकरी की समझ में सारा माजरा आ गया ! उसने गुस्से से भर कर पूरी ताकत से भेड़िये के पेट को अपने सींग से चीर दिया ! चारों बच्चे बाहर निकल पड़े और भेड़िया मर गया ! बकरी अपने बच्चों को लेकर घर आ गयी और बच्चों से सारी बात जानने के बाद उसने छोटे बच्चे की समझदारी की तारीफ भी की ! और अपने घर के दरवाज़े में एक छोटा छेद भी बना दिया जिसमें से झाँक कर बच्चे देख सकें कि बाहर जो खड़ा है वह दोस्त है या दुश्मन ! सब बच्चों ने मिल कर हरी हरी नरम नरम घास खाई और अपनी माँ की गोद में दुबक कर निश्चिंत होकर सो गये !

साधना वैद

10 comments :

  1. यह कहानी पढ़कर अपने बचपन की याद आ गई । उस समय हम लोग बकरी के बच्चे की तर्ह ही होते है माँ की गोद मे दुबक जाने वाले । अब माँ नही है तो पता चलता है कि माँ क्या होती है । लेकिन इस दुनिया मे भेड़िये भी कम नही हुए हैं और जनता बेचारी बकरी के बच्चे की तरह ही है ।

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  2. अच्छा लगा यह कहानी पढ़कर.

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  3. बहुत सुन्दर बक़ल कथा है। धन्यवाद

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  4. आपने बिलकुल ठीक कहा है शरदजी ! भेड़िये नेताओं से निरीह जनता को अपनी जान बचाने के लिए बहुत सतर्क और सावधान रहने की सख्त ज़रूरत है ! पता नहीं आज के युग में पैने सींगों वाली बकरी माँ उनकी रक्षा के लिए आ पाए या नहीं ! प्रतिक्रया के लिए आभारी हूं !

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  5. सुंदर संदेश देती हुई सुन्दर बाल कथा

    regards

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  6. bachpan kee seekh aur loriyon jaisi kahani yaad aa gai

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  7. bachpan kee yaad dila di aapne... kayi baar ye kahani sun aur padh chuka hun par aaj bhi bilkul taja lagta hai...

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  8. Kavita Vaid
    very nice story with a sweet message! Last night i told shreyas the goat story. you wouldnt believe it, at end of it he said to himself..."never open the door to a stranger"
    your stories are surely teaching him good lessons!

    यह सन्देश अमेरिका से मेरी बहू कविता ने भेजा है और मैं बहुत खुश हूँ कि बच्चे इन कहानियों से सही शिक्षा ग्रहण कर रहे है !

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