आज मन बहुत उदास है ! अपनी एक पुरानी कविता बहुत उद्वेलित कर रही है !
इसे आपके साथ बाँटना चाहती हूँ शायद मेरी पीड़ा कुछ कम हो जाये !
सागर का तट मैं एकाकी और उदासी शाम
ढलता सूरज देख रही हूँ अपलक और अविराम ।
जितना गहरा सागर उतनी भावों की गहराई
कितना आकुल अंतर कितनी स्मृतियाँ उद्दाम ।
पंछी दल लौटे नीड़ों को मेरा नीड़ कहाँ है
नहीं कोई आतुर चलने को मेरी उंगली थाम ।
सूरज डूबा और आखिरी दृश्य घुला पानी में
दूर क्षितिज तक जल और नभ अब पसरे हैं गुमनाम ।
बाहर भी तम भीतर भी तम लुप्त हुई सब माया
सुनती हूँ दोनों का गर्जन निश्चल और निष्काम ।
कोई होता जो मेरे इस मूक रुदन को सुनता
कोई आकर मुझे जगाता बन कर मेरा राम !
साधना वैद
ये क्या है जी ?
ReplyDeleteलौट आईये न अपने देश...सारी उदासी हट जायेगी.
बैचैन कर गयी आपकी कविता.
सुन्दर रचना, बेहद प्रभावशाली, अब अपनी उदासी को दूर झटक कर कलम फिर से उठा लीजिये और हमें एक और बेहतरीन रचना पढ्वाइये!
ReplyDeleteकभी कभी जीवन में ऐसी परिस्थिति आ जाति है कि मन बहुत उद्वेलित हो जाता है ..आप ऐसी ही स्थिति से गुज़र रही हैं ...
ReplyDeleteबाहर भी तम भीतर भी तम लुप्त हुई सब माया
सुनती हूँ दोनों का गर्जन निश्चल और निष्काम
यह पंक्तियाँ निश्चय ही आपकी प्रेरणास्रोत होंगी..जहाँ हर स्थिति में निष्काम भाव हो ...मूक रुदन के बाद स्वयं ही खुद को जगाना और संभालना होता है ...शुभकामनायें
सूरज डूबा और आखिरी दृश्य घुला पानी में
ReplyDeleteदूर क्षितिज तक जल और नभ अब पसरे हैं गुमनाम ।
बहुत सुंदर ।
मंगलवार 3 अगस्त को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है .कृपया वहाँ आ कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ .... आभार
ReplyDeletehttp://charchamanch.blogspot.com/
अभी से उस उदासी का कारण समझ से बाहर है |
ReplyDeleteखुश रहो ,हर समय हँसती रहो हंसाती रहो ,बस वैसी ही अच्छी लगती हो |अपनों के जाने से दुःख तो होता
है पर शास्वत सत्य से मुंह नहीं फेरा जा सकता |
कविता लिखी बहुत अच्छी है |
आशा
पहले तो ये बताएं की इतनी उदासी क्यों ..?
ReplyDeleteनिश्छल और निष्काम गर्जन सुनने के बाद तो यूँ भी उदासी का क्या काम ...
मूक रुदन नयी उर्जा भी देता है ...निकल जाने दीजिये गुबार को और फिर से ताज़ा हो जाईये ...!
अरे ये क्या करती है दीदी आप और उदासी न न आप तो बस हस्ती खिलखिलाती रहिये |वह देश भी तो अपनेबच्चो का ही है पर सच बताए अब आपको घर याद आरहा है बस बहुत हो गया अब आभी जाईये न | यहाँ भी याद सताती है|
ReplyDeletebhawpurn kavita.
ReplyDeleteकोई होता जो मेरे इस मूक रुदन को सुनता
ReplyDeleteकोई आकर मुझे जगाता बन कर मेरा राम ! ..... dil ki baat kah di aapne.
कविता बहुत अच्छी है...लेकिन उदास कवितायेँ मत लिखा कीजिये...जीवन हंसने का नाम है...
ReplyDeleteनीरज
जितना गहरा सागर उतनी भावों की गहराई
ReplyDeleteकितना आकुल अंतर कितनी स्मृतियाँ उद्दाम ।
साधना जी नमस्कार .
आपकी कविता बहुत सुंदर है |मैंने नयी-पुरानी हलचल पर उसे लिया है|कृपया आयें और अपने शुभ विचार दें |
http://nayi-purani-halchal.blogspot.com/
anupama tripathi.
कोई होता जो मेरे इस मूक रुदन को सुनता
ReplyDeleteकोई आकर मुझे जगाता बन कर मेरा राम !
भावनाओं को उभारती रचना.
सादर