क्यों भला आया है मुझको पूजने
है नहीं स्वीकार यह पूजा तेरी ,
मैं तो खुद चल कर तेरे घर आई थी
क्यों नहीं की अर्चना तूने मेरी ?
आगमन की सूचना पर क्यों तेरे
भाल पर थे अनगिनत सिलवट पड़े ,
रोकने को रास्ता मेरा भला
किसलिये तब राह में थे सब खड़े ?
प्राण मेरे छीनने के वास्ते
किस तरह तूने किये सौ-सौ जतन ,
अब भला किस कामना की आस में
कर रहा सौ बार झुक-झुक कर नमन !
देख तुझको यों अँधेरों में घिरा
रोशनी बन तम मिटाने आई थी ,
तू नहीं इस योग्य वर पाये मेरा ,
मैं तेरा जीवन बनाने आई थी !
मैं तेरे उपवन में हर्षोल्लास का
एक नव पौधा लगाने आई थी ,
नोंच कर फेंका उसे तूने अधम
मैं तेरा दुःख दूर करने आई थी !
मार डाला एक जीवित देवी को
पूजते हो पत्थरों की मूर्ती ,
किसलिये यह ढोंग पूजा पाठ का
चाहते निज स्वार्थों की पूर्ती !
है नहीं जिनके हृदय माया दया
क्षमा उनको मैं कभी करती नहीं ,
और अपने हर अमानुष कृत्य का
दण्ड भी मिल जायेगा उनको यहीं !
साधना वैद
बहुत ही सार्थक प्रस्तुति दिल बहुत बैचेन हो रहा था कि साधना जी नाभी तक्महिला दिवस को लेकर कुछ क्यों नहीं लिखा बस आपका ये आक्रोश्मुझामे चेतना जगा गया |
ReplyDeleteमार डाला एक जीवित देवी को पूजते हो पत्थरों की मूर्ती , किसलिये यह ढोंग पूजा पाठ का चाहते निज स्वार्थों की पूर्ती !
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना, बेहतरीन सार्थक प्रस्तुति.......साधना जी,.... बधाई
MY RESENT POST ...काव्यान्जलि ...:बसंती रंग छा गया,...
चेतावनी देती अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteबेहतरीन कविता।
ReplyDeleteसादर
मार डाला एक जीवित देवी को
ReplyDeleteपूजते हो पत्थरों की मूर्ती ,
किसलिये यह ढोंग पूजा पाठ का
चाहते निज स्वार्थों की पूर्ती !
निःशब्द हूँ...
भीतर तक उतर गये एक एक शब्द...
सादर.
yathart ko darshati.......bhawpoorn kavita,bahut achchi lagi.
ReplyDelete@ आज बहुत दिन बाद आपके दर्शन हुए हैं मेरे ब्लॉग पर बीना जी ! कृतार्थ हुई ! इसी तरह मुझे प्रोत्साहित करती रहा करें ! आभारी रहूँगी !
ReplyDeleteसटीक और सार्थक अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteमार डाला एक जीवित देवी को
ReplyDeleteपूजते हो पत्थरों की मूर्ती ,
किसलिये यह ढोंग पूजा पाठ का
चाहते निज स्वार्थों की पूर्ती !
Nice .
सार्थक प्रस्तुति.....
ReplyDeletesundar rachna ..shandar
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना....
ReplyDeleteआदरणीय मौसीजी सादर वन्दे, सार्थक पोस्ट है ।किसी भी तरह के अमानुष कृत्य को कभी क्षमा नहीं किया जा सकता है फिर यह तो निज स्वार्थ की पूर्ति के लिए किया जाने वाला पाप है। इस सार्थक आलेख के लिए आभार ।
ReplyDeleteआदरणीय मौसीजी सादर वन्दे, सार्थक पोस्ट है ।किसी भी तरह के अमानुष कृत्य को कभी क्षमा नहीं किया जा सकता है फिर यह तो निज स्वार्थ की पूर्ति के लिए किया जाने वाला पाप है। इस सार्थक आलेख के लिए आभार ।
ReplyDelete.
ReplyDeleteआक्रोश पूरी तरह मुखर है आपकी रचना में …
समाज में व्याप्त दोहरेपन से नारी और पुरुष दोनों त्रस्त हैं …
लेकिन उत्तरदायी कोई और नहीं , आप-हम स्वयं ही हैं ।
भावों की अच्छी प्रस्तुति के लिए बधाई !
शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
मार डाला एक जीवित देवी को
ReplyDeleteपूजते हो पत्थरों की मूर्ती ,
प्रश्न उठाती, चुभती हुयी सार्थक रचना...
सादर.
itna dard ..itna gussa jayaj hai .... maine har bas puja hi tujhe devii kaha kar jab bari aayi haq dene ki muh mod liya ...
ReplyDeletesabd vandan ke yogya hai
सुन्दर और सार्थक रचना |बधाई |
ReplyDeleteआशा
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति.....समाज का ये चेहरा हम सबको व्यथित करता ही है...
ReplyDeleteआपकी पोस्ट आज की ब्लोगर्स वीकली मीट (३४) में शामिल की गई है /आप आइये और अपने विचारों से हमें अवगत करिए /आप इसी तरह मेहनत और लगन से हिंदी की सेवा करते रहें यही कामना है /आभार /लिंक है
ReplyDeletehttp://hbfint.blogspot.in/2012/03/34-brain-food.html
बहुत बढ़िया सार्थक प्रस्तुति,भावपूर्ण सुंदर रचना,...
ReplyDeleteRESENT POST...काव्यान्जलि ...: बसंती रंग छा गया,...
मार डाला एक जीवित देवी को
ReplyDeleteपूजते हो पत्थरों की मूर्ती ,
किसलिये यह ढोंग पूजा पाठ का
चाहते निज स्वार्थों की पूर्ती !
....दुर्गा पूजक देश में कन्या की भ्रूण हत्या निश्चय ही निंदनीय है...रचना के भाव अंतस को झकझोर देते हैं...यथार्थ को चित्रित करती बहुत सटीक और मर्मस्पर्शी रचना...
bahut suddar likha , ye unake munh par ek tamacha hai jo patthar kee devi ko poojate hain kis liye ek beta pane ke lie, betiyan to jaise unake dvar par bojh bankar padi rahati hain. aise logon ke liye karara kataksh . bahut bahut aabhar isa rachna ke liye.
ReplyDeleteआदरणीय साधना जी
ReplyDeleteनमस्कार !
बहुत सटीक रचना के भाव अंतस को झकझोर देते मर्मस्पर्शी रचना..!
होली की सादर बधाईयाँ...
जरूरी कार्यो के ब्लॉगजगत से दूर था
आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ
मार डाला एक जीवित देवी को
ReplyDeleteपूजते हो पत्थरों की मूर्ती ,
किसलिये यह ढोंग पूजा पाठ का
चाहते निज स्वार्थों की पूर्ती !" रोमांच हो आया , बहुत अच्छी रचना