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Thursday, March 15, 2012
कसक
कैसा लगता है
जब गहन भावना से परिपूर्ण
सुदृढ़ नींव वाले प्रेम के अंतर महल को
सागर का एक छोटा सा ज्वार का रेला
पल भर में बहा ले जाता है ।
क़ैसा लगता है
जब अनन्य श्रद्धा और भक्ति से
किसी मूरत के चरणों में झुका शीश
विनयपूर्ण वन्दना के बाद जब ऊपर उठता है
तो सामने न वे चरण होते हैं और ना ही वह मूरत ।
क़ैसा लगता है
जब शीतल छाया के लिये रोपा हुआ पौधा
खजूर की तरह ऊँचा निकल जाता है
जिससे छाया तो नहीं ही मिलती उसका खुरदरा स्पर्श
तन मन को छील कर घायल और कर जाता है ।
कैसा लगता है
जब पत्तों पर संचित ओस की बूंदों की
अनमोल निधि हवा के क्षणिक झोंके से
पल भर में नीचे गिर धरा में विलीन हो जाती हैं
और सारे पत्तों को एकदम से रीता कर जाती हैं ।
साधना वैद
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एक सुखद आध्यात्मिक अनुभूति।
ReplyDeleteइस कसक पर क्या लिखूँ ?
ReplyDeleteसोच रही हूँ बस .... सागर का छोटा सा ज्वार गर बहा ले गया प्रेम के अंतरमहल को तो सुदृढ़ नीव पर ही हमला हुआ होगा ....अनन्य श्रद्धा और भक्ति जहां हो वहाँ तो मुंदे नयनो से भी मोहनी सूरत नज़र आ जाती है ...और आज के जमाने में बच्चों को तो शीतल छायादार वृक्ष समझने की भूल नहीं ही करनी चाहिए ...
और ओस की बूंद के समान भावनाएं भी क्षणिक प्रहारों से लुप्त हो मन को रीता कर जाती हैं ....
मन को छूती हुई सशक्त रचना .....
बहुत गहरे भाव छिपे हैं रचना में बधाई|
ReplyDeleteमेरी पुस्तक "अनकहा सच" कल छप कर आगई है |उसका विमोचन दिनांक ३१.३.२०१२ को रखा है |सपरिवार आमंत्रण |
आशा
bahut hi gahri kavita hain,
ReplyDeletenice poem
क़ैसा लगता है
ReplyDeleteजब अनन्य श्रद्धा और भक्ति से
किसी मूरत के चरणों में झुका शीश
विनयपूर्ण वन्दना के बाद जब ऊपर उठता है
तो सामने न वे चरण होते हैं और ना ही वह मूरत ।
बहुत सुन्दर साधना जी...
विश्वास का टूटना कैसा लगता है इससे शब्दों में भला कैसे व्यक्त करें...
सादर.
bahot bura lagta hai......lekin kavita behad achchi hai.....
ReplyDeleteक़ैसा लगता है
ReplyDeleteजब अनन्य श्रद्धा और भक्ति से
किसी मूरत के चरणों में झुका शीश
विनयपूर्ण वन्दना के बाद जब ऊपर उठता है
तो सामने न वे चरण होते हैं और ना ही वह मूरत । ... बस एक अनकही स्तब्द्धता और मंथन
कैसा लगता है ……………ये कसक ………उफ़ निशब्द कर दिया आपकी इस रचना ने ।
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteसादर
पल भर में नीचे गिर धरा में विलीन हो जाती हैं
ReplyDeleteऔर सारे पत्तों को एकदम से रीता कर जाती हैं ।
पढकर सुखद आध्यात्मिक अनुभूति महसूस किया..
MY RESENT POST...काव्यान्जलि ...: तब मधुशाला हम जाते है,...
कैसा लगता है
ReplyDeleteजब पत्तों पर संचित ओस की बूंदों की
अनमोल निधि हवा के क्षणिक झोंके से
पल भर में नीचे गिर धरा में विलीन हो जाती हैं
और सारे पत्तों को एकदम से रीता कर जाती हैं ।
बहुत सुंदर भाव ....
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteबहुत सुंदर-अद्भुत ..
ReplyDeleteबहुत बुरा लगता है।
ReplyDelete### इम्यून सिस्टम को मज़बूत बनाता है पावन वैवाहिक प्रेम
http://blogkikhabren.blogspot.com/
कैसा लगता है- ये कि सारी चीज़ों का अंत निश्चित है, फिर भी उन्ही थोड़ी थोड़ी जिंदगियों में खूबसूरती है, जो जितना चाहे सराह ले!
ReplyDeleteसुन्दर, प्रभावशाली पोस्ट.
सादर
जब सपनों के महल धराशायी होते हैं ...जब विश्वास टूटते हैं ..जब किसीको खो देने का दुःख , एक खोह बना देता है भीतर ....वह पीड़ा सिर्फ अपनी होती है ....
ReplyDelete..गहरे पैठती रचना !
अद्भुत कविता है साधना जी हर पंक्ति हर शब्द लाजबाब !
ReplyDelete........
क़ैसा लगता है
जब अनन्य श्रद्धा और भक्ति से
किसी मूरत के चरणों में झुका शीश
विनयपूर्ण वन्दना के बाद जब ऊपर उठता है
तो सामने न वे चरण होते हैं और ना ही वह मूरत ।
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteसच बड़ा दुःख होता है जब जब शीतल छाया के लिये रोपा हुआ पौधा
ReplyDeleteखजूर की तरह ऊँचा निकल जाता है जिससे छाया तो नहीं ही मिलती उसका खुरदरा स्पर्श तन मन को छील कर घायल और कर जाता है ...लेकिन उम्मीद है कि साथ ही नहीं छोड़ती आखिर इतने प्यार से उसकी देखभाल कि उसे सींचा तो क्या उसे लगाव नहीं होता हमसे?? मन को गहरे तक छू रहे हैं आपके शब्द... आभार...
आपको ये मैं बड़े हर्ष के साथ सूचित कर रही हूँ की आपकी पोस्ट आज की ब्लोगर्स मीट वीकली (३५) में शामिल की गई है आप आइये और अपने अनुपम विचारों से हमें अवगत करिए /आपका सहयोग हमेशा इस मंच को मिलता रहे यही कामना है /आभार /लिंक है
ReplyDeletehttp://hbfint.blogspot.in/2012/03/35-love-improves-immunity.html
बहुत ही गहन भाव लिए उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteक़ैसा लगता है
ReplyDeleteजब शीतल छाया के लिये रोपा हुआ पौधा
खजूर की तरह ऊँचा निकल जाता है
जिससे छाया तो नहीं ही मिलती उसका खुरदरा स्पर्श
तन मन को छील कर घायल और कर जाता है ।
.... गहन चिंतन...बहुत सुंदर प्रस्तुति..
gahen tulantamak upmaao aur bimbo se saty ko ukerti, sacchayi ka pardafash karti utkrisht rachna.
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