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Sunday, December 14, 2014

धर्मांतरण पर बवाल




धर्मांतरण पर बवाल
 

धर्म क्या है ? शब्दकोष के अनुसार धर्म का अर्थ है – विश्वास, कर्तव्य और एक या अनेक दैवीय शक्तियों के प्रति आस्था जिन्होंने समूचे संसार को बनाया है और जिनके कारण इस सृष्टि का कारोबार चलता है !

यद्यपि बाद में नास्तिक होना भी एक धर्म मान लिया गया ! अनेक धर्म अस्तित्व में आये, उनमें भी समय के साथ बदलाव हुआ और उनके मानने वालों की संख्या कभी घटी तो कभी बढ़ी ! हिन्दू, ईसाई, इस्लाम, बौद्ध, जैन, सिक्ख आदि सभी धर्मों में परिवर्तन की यह प्रक्रिया चलती रहती है ! एक ही धर्म के मानने वाले अनुयायी भी अपनी-अपनी समझ के अनुसार अनेकों शाखाओं उपशाखाओं में बँटते जाते हैं ! यह एक सतत प्रक्रिया है और क्योंकि मनुष्य एक चिंतनशील प्राणी है, नई सोच के अनुसार आवश्यक बदलाव के प्रति उन्मुख होना उसका स्वभाव है !

समस्या तब आती है जब धर्म और भौतिक शक्तियों के घालमेल की वजह से संशय की स्थिति पैदा हो जाती है और किसी एक धर्म के मानने वाले के शासक बन जाने पर अथवा शक्तिशाली हो जाने पर हम इसे उस धर्म विशेष की जीत के रूप में देखने लगते हैं ! इसी तरह किसी एक धर्म के मानने वालों की संख्या बढ़ जाने से हम इसे उस धर्म की विजय मानने लगते हैं ! उदाहरण के लिये जब जॉर्ज बुश ने सद्दाम हुसैन को परास्त कर दिया तो ईराक में इसे इस्लाम की हार और क्रिश्चियनिटी की जीत के रूप में देखा गया ! इसी तरह जब मौहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को हरा दिया तो मुस्लिम जगत में इसे इस्लाम की जीत और हिन्दू धर्म की पराजय के रूप में देखा गया ! इतिहास में ऐसी अनेकों घटनाएं अनेकों बार हर धर्म के साथ घटित हुई हैं लेकिन क्या वास्तव में इन घटनाओं के कारण इस्लाम, हिन्दू या अन्य अनेकों धर्मों का अस्तित्व समाप्त हो गया ? बिलकुल भी नहीं !

प्रथम रक्तहीन धर्मान्तरण उसे कह सकते हैं जब गौतम बुद्ध ने बनारस के हिन्दू विद्वानों को शास्त्रार्थ में हरा कर उन्हें बौद्ध धर्म अपनाने के लिये प्रेरित किया और वे सारे धर्माधिकारी तथा आम जनता सहर्ष स्वेच्छा से बौद्ध धर्म को अपनाने के लिये तैयार हो गये ! संभवत: यह प्रथम रक्तहीन तथा किसी भी प्रकार के प्रलोभन से रहित धर्मांतरण था ! 

वर्तमान समय में भारत की परिस्थितियों पर ज़रा गौर करें ! भारत एक बहुधर्मी देश है जिसमें लगभग ८० प्रतिशत लोग हिन्दू हैं ! दूसरा प्रमुख धर्म इस्लाम है जिसको मानने वाले लगभग १४ प्रतिशत हैं ! ईसाईयों की जनसंख्या मात्र २.५ प्रतिशत ही है ! अन्य धर्मों के अनुयायी शेष ३.५ प्रतिशत में ही सिमट जाते हैं ! अधिकांश हिंदुओं को यह भय लगा रहता है कि कहीं ऐसा न हो जाए कि आगे चल कर उनका यह संख्या बल कम हो जाए ! वहीं मुसलमान और ईसाई अनुयाइयों की सोच यह है कि किसी प्रकार उनका प्रतिशत कुछ बढ़ सके तो वे अधिक सुरक्षित रहेंगे !

स्वतन्त्रता से पहले ब्रिटिश और मुस्लिम शासकों द्वारा लालच देकर और डरा धमका कर बड़ी संख्या में धर्मांतरण करवाया गया ! वर्तमान में भी, क्योंकि देश में गरीबी और बेरोजगारी बहुत अधिक है और आबादी के इसी वर्ग में धर्म परिवर्तन की घटनाएं अधिक हो रही हैं ऐसे में बहुसंख्यक हिंदुओं का यह सोचना स्वाभाविक है कि इसके पीछे कहीं प्रलोभन की राजनीति तो काम नहीं कर रही है और विदेशों से आने वाले धन का कहीं दुरुपयोग तो नहीं हो रहा है ! भारत के लचीले कानूनों की वजह से बेशुमार धन चर्च, मदरसों और मस्जिदों के रखरखाव के लिये विदेशों से आता है ! दानकर्ताओं में कई अमीर ईसाई व मुस्लिम देश शामिल हैं !


अनेक बार इस तरह से ज़ोर ज़बरदस्ती के साथ धर्म परिवर्तन कराये जाने पर पूर्ण रूप से रोक लगाने के लिये क़ानून बनाने का प्रस्ताव लाया गया पर मानवाधिकारों और अल्पसंख्यकों की नाराज़गी का ख़याल रख कर कभी भी ऐसा प्रभावी क़ानून बन नहीं पाया ! फिर भी राज्य सरकारों के स्तर पर अनेक राज्यों जैसे अरुणांचल प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ तथा हिमांचल प्रदेश में धर्मांतरण पर रोक लगाने वाले कानून बने भी और लागू भी हैं ! मज़े की बात यह है कि ये क़ानून जब लागू किये गये उस समय इन में से अधिकाँश राज्यों में कॉंग्रेस की सरकार थी ! 


अब ज़रा आगरा में हाल ही में हुए धर्मांतरण के प्रसंग पर विचार किया जाए ! सर्वविदित है कि भाजपा का संघ परिवार बड़ा है जिसमें अनेक छोटे-छोटे स्वतंत्र समूह ऐसे भी हैं जिनमें उत्साह से भरपूर और सोच में कंजूस विचारधाराओं वाले अधीर कार्यकर्ताओं की भरमार है ! आगरा में धर्मांतरण का यह आधा अधूरा प्रयास उसी बेसब्रेपन का परिणाम है ! इस समय हमारे राजनेताओं के दोहरे चेहरों को लोकसभा और राज्यसभा में बहस के समय देखा जा सकता है ! जहाँ भाजपा यह कहती है कि हम ऐसी घटनाओं को गलत मानते है और ऐसा क़ानून बनाना चाहिए जिससे लालच देकर धर्मांतरण करने पर रोक लग सके वहीं कॉंग्रेस और उसके साथी दल ऐसा कोई भी क़ानून बनाने के पक्ष में नहीं हैं और इस प्रस्ताव का विरोध कर रहे हैं ! वे लोग अपने विरोध को सिर्फ आगरा जैसी घटनाओं को रोकने तक ही सीमित रखना चाहते हैं ! आखिर उनको अपने वोट बैंक की चिंता भी तो करनी है !


खैर ! नेताओं के तमाशे तो चलते ही रहेंगे पर सच बात तो यह है कि ये सब तमाशे गरीबी, बेरोज़गारी और अशिक्षा की वजह से होते हैं ! इन समस्याओं पर जैसे ही नियंत्रण हो जाएगा प्रलोभन देकर कराये जाने वाले इस तरह के धर्मान्तरणों की समस्या अपने आप समाप्त हो जायेगी ! आपने किसी सम्पन्न और शिक्षित व्यक्ति को प्रलोभन या डर की वजह से अपना धर्म बदलते हुए कम ही देखा होगा ! गरीबी उन्मूलन भारत की अनेकानेक समस्याओं की एक मात्र उसी तरह की कारगर दवा है जैसे कि पहले हर कष्ट की एक दवा अमृतधारा हुआ करती थी ! 


साधना वैद   

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