इस अंजुरी में समाई है
सारी दुनिया मेरी
माँ की ममता,
बाबूजी का दुलार,
दीदी का प्यार
भैया की स्नेहिल मनुहार
ये सारे अनुपम उपहार
अपने आशीर्वाद के साथ
मेरी अंजुरी में बाँध दिए थे माँ ने
विवाह के मंडप में
कन्यादान के समय !
उसी वक्त से सहेजे बैठी हूँ
इन्हें बड़े जतन से !
डरती हूँ
कहीं सरक न जाएँ
मेरी शिथिल उँगलियों की
किसी झिरी से
और मुझे कहीं
अकिंचन ना कर जाएँ
जीवन के इस पड़ाव पर !
आज तक ये ही तो
दृढ़ता के साथ
मेरे संग रहे हैं
मेरा सम्बल बन कर
हर विषम परिस्थिति में
हर प्रतिकूल पल में !
अपनी अंजुरी मैंने
कस कर बंद कर ली है
क्योंकि मैं इन्हें
खोना नहीं चाहती
किसी भी मूल्य पर !
साधना वैद
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 15 दिसम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद यशोदा जी ! आभार आपका ! सप्रेम वन्दे !
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (16-12-2019) को "आस मन पलती रही "(चर्चा अंक-3551) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं…
*****
रवीन्द्र सिंह यादव
बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण सृजन
ReplyDeleteवाह!!!
हार्दिक धन्यवाद अमित जी ! आभार आपका !
ReplyDeleteवाह!!बहुत खूबसूरत सृजन ! साधना जी ।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद शुभा जी ! आभार आपका !
Deleteइस अंजुरी में समाई है
ReplyDeleteसारी दुनिया मेरी
माँ की ममता,
बाबूजी का दुलार,
दीदी का प्यार
भैया की स्नेहिल मनुहार
ये सारे अनुपम उपहार
अपने आशीर्वाद के साथ... बहुत ही सुन्दर सृजन आदरणीया दीदी जी
आभार आपका अनीता जी ! तहे दिल से शुक्रिया !
Deleteकहीं सरक न जाएँ
ReplyDeleteमेरी शिथिल उँगलियों की
किसी झिरी से
और मुझे कहीं
अकिंचन ना कर जाएँ
यही डर मायके की अनुपम थाती है जो हमे आदर्श रूप में स्थिर रखता है ।
बेहतरीन ......
सादर ।
कविता आपको अच्छी लगी ! मन प्रसन्न हुआ ! हार्दिक धन्यवाद पल्लवी जी ! आभार आपका !
Deleteबहुत शानदार कविता |मन को छू गई |
ReplyDeleteसुंदर रचना
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! आभार आपका !
Deleteसच एक पारिवारिक स्नेहिल बंधन जो दो परिवारों को तामउम्र बांधें रखता है, वह हमारे हाथ ही तो हैं , हमारी मुट्ठी ही है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
हृदय से बहुत बहुत आभार आपका कविता जी ! दिल से शुक्रिया !
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