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Monday, January 13, 2020

ताशकंद यात्रा – ७ तैमूर का समरकंद -२



तैमूर का मकबरा, ‘गुर ए अमीर’ देख कर हमारा काफिला रेगिस्तान स्क्वेयर की ओर चला ! गर्मी बहुत ज़बरदस्त थी ! गर्मी से राहत पाने के लिए कैप छाते जो साथ में लाये थे बस के लगेज केबिन में अटेची में बंद रखे थे ! हमने अपने गाइड से अनुरोध किया कि ड्राइवर से कह कर यह सामान वह निकलवा दे ! सबकी मन की मुराद पूरी हुई ! बस से सबने अपना अपना सामान निकाला ! कैप छातों से लैस होकर हम सब समरकंद का एक और प्रसिद्ध स्थान रेगिस्तान स्क्वेयर देखने के लिए चल पड़े !

यहाँ पन्द्रहवीं और सत्रहवीं शताब्दी के बने हुए तीन मदरसे हैं जो बहुत ही शानदार हैं और तत्कालीन स्थापत्य के बेहतरीन उदाहरण हैं ! सबसे बड़ा और सबसे पुराना मदरसा उलुगबेग मदरसा है जिसे तैमूर के पोते उलुगबेग ने सन १४१७ से सन १४२० के बीच बनवाया ! इसकी कारीगरी और खूबसूरत मोजेक और टाइल वर्क देखते ही बनता है ! इसके चारों कोनों पर सुन्दर मीनारें बनी हुई हैं ! उलुगबेग स्वयं बहुत विद्वान् था ! खगोल विद्या में उसकी बहुत दिलचस्पी थी ! उसके इस मदरसे में छात्रों को विज्ञान, गणित और खगोलशास्त्र जैसे विषय भी पढ़ाये जाते थे ! यहाँ पर छात्रावास की व्यवस्था भी थी ! छात्र यहाँ आकर उसी तरह रहते थे जैसे आजकल होस्टल में रहते हैं !


दूसरा मदरसा शेर डोर मदरसा है जिसका निर्माण यलन्गतूश बक्दूर ने सत्रहवीं शताब्दी में सन १६१९ से सन १६३६ के बीच करवाया ! इसके मुख्य द्वार पर हिरन और शेर की आकृतियाँ बनी हुई हैं ! शेर के शरीर पर उदित होते सूर्य की आकृति भी बनी हुई है ! एक मदरसे के द्वार पर इस तरह की आकृतियों का बनाया जाना हैरान कर जाता है क्योंकि इस्लामी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार किसी भी स्थान पर जीवित प्राणी की छवि को उकेरना या बनाना निषिद्ध माना जाता है !


तीसरा मदरसा तिल्या कोरी मदरसा है जिसका निर्माण सन १६४६ से सन १६६० के बीच हुआ ! यह बहुत ही विशाल दोमंज़िला इमारत है ! जहाँ हर जुम्मे के दिन समरकंद की सारी आबादी नमाज़ पढ़ने के लिए एकत्रित होती थी ! सारे शाही फरमानों की घोषणा यहाँ से की जाती थी और दूर दूर से पढ़ने के लिए छात्र यहाँ आते थे ! यहाँ भी छात्रों के रहने का समुचित प्रबंध था और यह अपने युग का सबसे मशहूर मदरसा माना जाता था !
रेगिस्तान स्क्वेयर की सैर बहुत ही बढ़िया रही ! हम लोग अगस्त के अंतिम सप्ताह में ताशकंद गए थे ! सितम्बर के प्रथम सप्ताह में उज्बेकिस्तान का स्वतन्त्रता दिवस आने वाला था ! सब जगह बड़ी ज़ोर शोर से उस उत्सव के लिए सजावट और सुरक्षा की चाक चौबंद तैयारियाँ चल रही थीं ! रेगिस्तान स्क्वेयर पर भी टूरिस्ट पुलिस का एक बड़ा दस्ता मुस्तैदी से तैनात था ! खूब लम्बे चौड़े खूबसूरत नौजवान ज़र्क वर्क पोशाक में बड़े ही आकर्षक लग रहे थे ! इस दस्ते में महिला पुलिसकर्मी भी शामिल थीं ! मैंने उनसे फोटो लेने की इज़ाजत माँगी तो उन्होंने बड़े प्यार से हमें अपने साथ खड़ा कर खूब सारी तस्वीरें खींचीं भी और खिंचवाई भी !


रेगिस्तान स्क्वेयर देखते देखते काफी देर हो गयी थी ! सुबह ताशकंद से बड़े सवेरे नाश्ता करके चले थे ! इस समय तक खूब भूख लग आई थी ! लंच के लिए हम सब बीबी मोबारो के घर पर जाने वाले थे ! उज्बेकिस्तान के किसी निवासी का अपना घर देखने का यह दुर्लभ अवसर था ! उनका जीवन, उनका रहन सहन, उनके तौर तरीके देखने की मुझे सच में बड़ी उत्सुकता और जिज्ञासा थी ! बीबी मोबारो ८० वर्ष की वृद्ध महिला हैं और साठ वर्षों से वे अपने घर में ही खानसामों और कर्मचारियों की सहायता से रेस्टोरेंट चला रही हैं जहाँ अतिथियों को सुस्वादिष्ट भोजन वे उपलब्ध कराती हैं ! उनके यहाँ बुटीक में तैयार किये गए सुंदर परिधान भी मिलते हैं ! 


बीबी मोबारो के घर का रास्ता बहुत ही खूबसूरत था ! रिहाइशी इलाके में जाने का यह हमारा पहला अवसर था ! यहाँ की सड़क मुख्य मार्ग से कुछ कम चौड़ी थी ! दोनों तरफ मकान बने हुए थे और उनमें अहातों में लगे हुए फलों के पेड़ों से सारा वातावरण सुरभित था ! बीबी मोबारो के घर के आगे पूरी सड़क को कवर करते हुए लोहे का बड़ा ऊँचा गेट सा बना हुआ था जिसमें अंगूरों के असंख्य गुच्छे लटक रहे थे ! बीबी मोबारो ने स्वयं गेट पर हम लोगों की अगवानी की ! उनका दोमंज़िला घर बहुत खूबसूरत था ! सामने दालान में दो बड़ी बड़ी टेबिल्स लगी हुई थीं जहाँ हमें शुद्ध शाकाहारी भोजन परोसा गया ! अत्यंत स्वादिष्ट दाल का सूप, चावल, उज्बेकिस्तान की स्पेशल नान, अनेकों तरह के अति स्वादिष्ट फल, सलाद, बेकरी आइटम्स और कोल्ड ड्रिंक्स ! मन और आत्मा तृप्त हो गयी ! वहाँ की उँगली के साइज़ की ककड़ी (खीरा) मुझे बहुत अच्छी लगीं ! बमुश्किल तीन चार इंच की लम्बाई और अँगूठे के बराबर मोटी ! उन्हें छीलने की ज़रुरत भी नहीं होती और स्वाद एकदम ग़ज़ब का !
बीबी मोबारो के यहाँ पले हुए बड़े सुन्दर पंछियों को भी देखा ! उनके घर के अन्दर के बरामदे में उनके परिवार के सदस्यों के साथ कुछ पल भी बिताये और खूब तस्वीरें भी लीं ! मन में खूब मधुर स्मृतियाँ लेकर हम बीबी मोबारो के घर से चले !


 ग्रुप में सब चर्चा कर रहे थे कि ताशकंद और समरकंद में सड़क पर कोई भी कुत्ता बिल्ली या जानवर नहीं दिखा ! मुझे एक घर के बगीचे में एक कुत्ता सोता हुआ दिखाई दिया तो मैंने उसकी तस्वीर ले ली ! लेकिन वह चौंक कर उठ गया ! मेरी हरकत शायद उसे पसंद नहीं आयी और वह उठ कर दूसरी जगह चला गया !

हमारा अगला पड़ाव उलुगबेग द्वारा बनवाई गयी ऑब्ज़र्वेटरी था ! लेकिन समय हमारे पास कम था ! अन्य मशहूर स्थल देखने बाकी थे और उसी रात बुखारा के लिए हमें ट्रेन भी पकड़नी थी ! इसलिए ऑब्ज़र्वेटरी के बाहर प्लेटफार्म पर लगी उलुगबेग की भव्य प्रतिमा को देख कर और उसकी तस्वीरें खींच कर ही हमने संतोष कर लिया ! और हम चल पड़े एक और मशहूर पर्यटन स्थल ‘शाह ए ज़िंदा’ देखने के लिए ! यह भी बहुत ही पुराना और ऐतिहासिक स्थान है ! इसका गेट उलुगबेग ने पंद्रहवीं सदी में बनवाया था ! 


इस जगह का नाम शाह ए ज़िंदा इसलिए पड़ा कि मशहूर किंवदंती के अनुसार सातवीं शताब्दी में पैगम्बर मोहोम्मद साहेब के रिश्ते के भाई कुसम इब्न अब्बास इस्लाम धर्म के प्रचार के लिए जब यहाँ आये तो उनका सर कलम कर दिया गया और उन्हें इस स्थान पर दफना दिया गया ! लेकिन कहा जाता है कि वे यहाँ कब्र से अपना सर लेकर एक गहरे कूएँ में प्रवेश कर गए जो बाग़े हयात में है ! लोगों का विश्वास है कि वो आज भी ज़िंदा हैं और वहाँ रहते हैं ! यहाँ पर अनेकों मकबरे हैं जिनमें कुछ कब्रें तैमूर की बहनों की हैं ! कुछ महत्वपूर्ण सेना के पदाधिकारियों या धर्म गुरुओं की हैं ! हमें सच में बड़े गर्व का अनुभव हुआ जब हमारे गाइड ने हमें बताया कि इनमें से कई मकबरों के निर्माण में राजस्थान के मकराना का संगमरमर इस्तेमाल किया गया है ! मकबरों में से वर्तमान में कुछ तो काफी खंडहर अवस्था में हैं लेकिन कई एक की मरम्मत कर उन्हें रेस्टोर करने का प्रयास किया गया है ! इस स्थान का निर्माण बारहवीं सदी से लेकर उन्नीसवीं सदी तक हुआ ! यह एक पहाड़ी पर बना हुआ है और सिलसिलेवार तीन मुकामों पर तीन ग्रुप्स में ये मकबरे बनाए गए हैं ! इसमें ऊपर तक जाने के लिए कई सीढ़ियाँ हैं ! यदि आपको सारी कब्रें और उनका स्थापत्य देखना हो तो ऊपर तक जाना पड़ता है ! ग्रुप के कई सदस्य तो ऊपर गए ही नहीं ! हमने लेकिन इसे पूरा देखा ! 

नीचे उतर कर आये तो अनेकों स्थानीय निवासियों ने हम लोगों के साथ खूब तस्वीरें खिंचवाईं ! सड़क किनारे हरे सेव का पेड़ लगा हुआ था ! फल छोटे थे तो समझ में नहीं आ रहा था कि कौन सा फल है ! तब एक लोकल बन्दे ने हम सबको छाँट छाँट कर बड़े बड़े सेव तोड़ कर खाने के लिए दिए ! सच में वहाँ के लोग बहुत ही आत्मीय और सज्जन हैं !

शाह ए ज़िंदा देखने के बाद हमें शॉपिंग के लिए बाज़ार जाना था ! सबसे अधिक मज़ा यहीं आया ! हालाँकि बस ने हमें काफी नीचे उतार दिया था लेकिन रास्ता रमणीक था और जगह खूबसूरत थी तो चल दिए उत्साह के साथ ! मार्केट के अन्दर पहुँच कर देखा कि केवल खाने के सामान का बाज़ार ही खुला था उस दिन ! लेकिन बाज़ार के आस पास जो अन्य दुकानें थीं वहाँ हर चीज़ मिल रही थी ! बहुत बड़े एरिया में यह बाज़ार था लेकिन कितना व्यवस्थित और साफ़ सुथरा ! ऊपर से पूरी तरह कवर्ड ! यहाँ हर प्रकार के मेवे मिल रहे थे ! सूखे मेवों का समरकंद सबसे बड़ा निर्यातक है ! काग़ज़ी बादाम का छिलका इतना नर्म और मुलायम कि अपने यहाँ की मूँगफली के छिलके भी उनसे कड़े लगें ! बाकी सब तो यहाँ भी खूब मिलता है लेकिन इतने बढ़िया बादाम यहाँ नहीं मिलते इसलिए हमने बादाम और अखरोट खरीदे वहाँ से ! आसपास की सोवेनियर शॉप्स से कुछ चीनी के प्लैटर्स खरीदे और समरकंद की यादगार स्वरुप कुछ शॉपिंग बैग्स लिए ! मेरा मोबाइल फोन वहाँ एक दूकान पर छूट गया ! लेकिन इतने शरीफ और सज्जन लोग हैं ! उन्होंने तुरंत लाकर हमें दे दिया ! मैंने उन्हें उपहार स्वरुप कुछ सोम देने की पेशकश भी की लेकिन उन्होंने विनम्रता के साथ लेने से मना कर दिया ! मेरा मन कृतज्ञता से भर उठा !

शाम उतर आई थी ! हमें डिनर के लिए भी जाना था और रात को बुखारा के लिए ट्रेन भी पकड़नी थी ! सारा सामान लेकर हम पहाड़ी से नीचे उतर कर एक स्थान पर बस का इंतज़ार करने के लिए बैठ गए ! आस पास का नज़ारा खूबसूरत था ! यहीं कहीं पास में बीबी खानम का मकबरा था लेकिन वहाँ जाने के लिए समय नहीं था ! बस के आते ही उसमें सवार होकर डिनर के लिए समरकंद के मशहूर करीमबेग होटल में हम लोग पहुँचे ! हम लोगों का २९ लोगों का ग्रुप था ! एक बहुत बड़ी टेबिल पर हम लोगों के लिए शाकाहारी भोजन का प्रबंध था ! जगह सुन्दर, भोजन स्वादिष्ट और सभी साथियों का सुखद सान्निध्य ! यात्रा का हर पल बहुत ही आनंद दायक था ! गुज़रने वाला हर पल हमें नयी ऊर्जा, नए अनुभव और नए ज्ञान से समृद्ध करता जा रहा था ! सबने खूब मज़े लेकर खाना खाया ! यहाँ से हमें सीधे स्टेशन जाना था बुखारा के लिए ट्रेन पकड़ने के लिए !


तो चलिए समरकंद का क़िस्सा यही ख़त्म करते हैं ! अगली कड़ी में आपसे मुलाक़ात होगी बुखारा में ! तब तक के लिए इजाज़त दीजिये और इन तस्वीरों का मज़ा लीजिये !



साधना वैद

8 comments :

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (14-01-2020) को   "सरसेंगे फिर खेत"   (चर्चा अंक - 3580)   पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    -- 
    लोहिड़ी तथा उत्तरायणी की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

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    1. आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! लोहड़ी और मकर संक्रांति की आपको भी सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं ! सादर वन्दे !
      !

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  2. सरल भाषाशैली में रोचक ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक जानकारी से भरा संस्मरण लेख, प्रणाम।

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    1. हार्दिक धन्यवाद महोदय ! आभार आपका !

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  3. बहुत सुन्दर वर्णन है साधना जी. आप तस्वीरें ज़्यादा पोस्ट कीजिए.
    समरकंद में स्वादिष्ट शाकाहारी भोजन ! वाह ! अब तो समरकंद, बुखार जाना ही पड़ेगा. हम जैसे शाकाहारी चीन, कोरिया और पाकिस्तान की यात्रा तो कर ही नहीं सकते.
    हमारे लिए आपका विवरण समकंद-बुखार के फलों और मेवों से कम नहीं है. बाबर ने भारत में जब फीका सा स्थानीय तरबूज़ खाया था तो वह काबुल के और समरकंद के तरबूज़ की मिठास को याद कर के रो दिया था. अब आप भारत में आम खाइयेगा, तरबूज़, अंगूर, आलू-बुखारा वगैरा तो आप फिर समकंद-बुखारा जाकर ही खाएंगी.

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    1. बिलकुल सच कह रहे हैं आप गोपेश जी ! शाकाहारी भोजन के नाम पर निरामिष व्यक्तियों को इन मुस्लिम देशों में, यहाँ तक कि अमेरिका व यूरोप में भी, समझौता तो करना ही पड़ता है ! भारतीय व्यंजन भारतीय विधि से बनाए हुए वहाँ आम रेस्टोरेंट्स में नहीं मिलते ! लेकिन फलाहार दूध, दही, आइसक्रीम, वेजीटेबिल सूप और नान आदि से काम चल ही जाता है ! ताशकंद में एक दिन बुखारा से लौटने के बाद जब बिलकुल भारतीय तरीके से बनी दाल, गोभी आलू की सब्जी, छाछ, और पतली पतली रोटियाँ आदि डिनर में खाने के लिए मिलीं तो सबकी आत्मा ऐसे तृप्त हुई जैसे छप्पन भोग मिल गए हों ! उस दिन का भोजन एक भारतीय रसोइये से ही बनवाया गया था !
      ब्लॉग पर अधिक तस्वीरें नहीं डाली जा सकतीं क्योंकि पोस्ट बहुत हेवी हो जाती है ! ताशकंद यात्रा की यह पूरी सीरीज मैंने फेसबुक पर भी पोस्ट की है ! वहाँ आपको सम्बंधित स्थानों की तस्वीरें प्रचुर मात्रा में देखने के लिए मिलेंगी ! आप मेरी वाल पर विजिट करेंगे तो मुझे बहुत प्रसन्नता होगी ! हार्दिक धन्यवाद आपका !

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  4. साधना जी, आपकी लेखनी तो कमाल की है ही, अब फ़ेसबुक पर आप की वाल पर आप के हाथों में आपके कैमरे का कमाल भी देख लेंगे.

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  5. सुन्दर वर्णन है साधना जी

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