कई बार देखी है मैंने
माँ के हाथों में
जलती हुई माचिस की तीली
कभी चूल्हा सुलगाते हुए,
कभी अँगीठी या स्टोव जलाते हुए,
कभी आरती का दीपक जलाते हुए,
कभी हवन की अग्नि प्रज्ज्वलित करते हुए,
कभी लालटेन या मोमबत्ती जलाते हुए !
कितनी सुखदाई लगा करती थी तब
यह माचिस की तीली
जैसे जीवन का सारा सार, सारा सुख,
सारा प्रकाश, सारी ऊर्जा
माचिस की इस नन्ही सी तीली में ही है !
चूल्हा जलने के बाद
रसोई से आती वह भोजन की सुगंध,
आरती का दीप जलने के बाद
मन में उमड़ती वह भक्ति भावना,
हवन के पात्र से नि:सृत होती
और वातावरण को शुद्ध करती
प्रज्वलित समिधा की वह पावन गंध,
घर के कोने कोने को प्रकाशित करती
लालटेन या मोमबत्ती की वह
ललछौंही मद्धम रोशनी सब
माचिस की तीली के सिरे पर जलती
उस नन्ही सी लौ की कारण ही तो
हमें प्राप्त हो पाती थी !
बड़ी आस्था थी तब हमें
माचिस की इस नन्हीं सी तीली पर !
लेकिन अब डर लगने लगा है
अब इसका इस्तेमाल अराजकता और
दंगे भड़काने के लिए होने लगा है,
पेट्रोल छिड़क कर कार, बस और रेलों को
आग लगाने के लिए होने लगा है !
सन्दर्भ बदलते ही पता नहीं कैसे
कभी बहुत प्रिय लगने वाली वस्तु
अनायास ही भय का कारण बन जाती है !
माचिस की यह जलती हुई तीली
अब मेरे मन की सुख शान्ति को भी
न जाने कैसे आग लगा जाती है !
साधना वैद
व्वाहहहहहह...
ReplyDeleteसादर नमन...
हार्दिक धन्यवाद आपका दिग्विजय जी ! आभार आपका !
Deleteसुप्रभात
ReplyDeleteबहुत दूर की सोच के लिए बधाई |उम्दा अभिव्यक्ति |
हार्दिक धन्यवाद जीजी ! आभार आपका !
Deleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद लोकेश जी ! दिल से आभार !
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद निशा जी !दिल से आभार आपका !
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आपका श्वेता जी ! बहुत बहुत आभार ! सप्रेम वन्दे !
ReplyDeleteउत्कृष्ट लेखन दीदीजी! सादर नमन।
ReplyDeleteबहुत खूब ,सुंदर अभिव्यक्ति ,सादर नमस्कार दी
ReplyDeleteनमस्कार कामिनी जी ! आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार !
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