चीखती रूहें
खौफनाक मंज़र
भागते लोग
शर्मिंदा खुदा
ग़मज़दा आयतें
धर्म का सोग
इंसानियत
हो गई शर्मसार
बहरा खुदा
अपने बंदे
भटकें इंसाफ को
सबसे जुदा
पर्दों के पीछे
धकेली गई स्त्री
कैसा इंसाफ
आधी आबादी
कर जग रौशन
हुई बर्बाद
आतंकी आका
खौफजदा जनता
ज़िंदगी जेल
बचा ले मौला
तेरे ही तो बंदे हैं
रोक ये खेल
साधना वैद
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteसमसामयिक हाइकू ।
ReplyDeleteवक़्त न जाने कैसा मंज़र दिखा रहा है ।
हार्दिक धन्यवाद संगीता जी ! वाकई दया के पात्र हैं ये बच्चे जो इन हालातों से जूझ रहे हैं !
Deleteहार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
ReplyDeleteउम्दा सर्जन |
ReplyDeleteआज तो ब्लॉग के भाग्य खुल गए ! बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार जीजी !
Delete