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Saturday, November 27, 2021

यह चिर चंचल यायावर मन


 


चंचल, बेकाबू, मतवाला

भागा करता सपनों के संग,

रुकता ही नहीं पल भर को भी

उड़ता फिरता विहगों के संग !

कैसे रोकूँ दीवाने को

सुनता ही कहाँ ये पागल मन,

हाथों से छूटा जाता है

यह चिर चंचल यायावर मन !

नापा करता आकाश क्षितिज

सारी धरती सारे सागर,

विचरा करता परियों के संग

किस्सों से भरता है गागर !

पल भर में सागर के तल की

वह नाप जोख कर आता है,

अगले पल ग्रह नक्षत्रों की

वह छान बीन कर आता है !

फिर जूल्स वारने के संग वह

खुद धरती में घुस जाता है,

सागर की गहराई में जा

    जल परियों से मिल आता है !   

है भरा हुआ जिज्ञासा से

नित अन्वेषी उत्साही मन,

कैसे इसको मैं बहलाऊँ

है पागल यह यायावर मन !

हर पर्वत, झरने, गाँव, नदी

वन पंछी इसे लुभाते हैं,

किस्सों के सारे पात्र इसे

पुस्तक से निकल बुलाते हैं !

हर दूर देश की वादी में

इसका मन यूँ रम जाता है,

जैसे कितने ही जन्मों से

इसका उस थल से नाता है !

फिर भूला भूला रहता है

यह नादाँ खाम खयाली मन,

मुझको तो प्यारा लगता है

यह भोला सा यायावर मन !

किस्से हर राजा रानी के

परियों के इसको भाते हैं,

महलों, दुर्गों, दालानों के

इसके मन को ललचाते हैं !

इतिहास, सभ्यता, संस्कृति की

बातों में मन इसका रमता,

हो ज़िक्र किसी अन्वेषण का

इसका उत्साह नहीं थमता !

हर शै में डूबा रहता है

मेरा यह अति उत्साही मन,

है मेरे अंतर का दर्पण

मेरा निश्च्छल यायावर मन !

हाथों से छूटा जाता है

यह चिर चंचल यायावर मन !

 

साधना वैद

 

 

 

 

 

 

 


11 comments :

  1. सुन्दर रचना

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    1. हार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  2. वाह! बहुत खूब।

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    1. हार्दिक धन्यवाद तिवारी जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  3. बहुत ही खूबसूरत और प्यारी रचना! पढ़कर बहुत अच्छा लगा!

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    1. हार्दिक धन्यवाद मनीषा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  4. बहुत बढियां रचना

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    1. आपका दिल से बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद भारती जी ! सप्रेम वन्दे !

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  5. Replies
    1. हृदय से बहुत बहुत आभार आपका उर्मिला जी ! दिल से धन्यवाद !

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