मेरे पितृ तुल्य जीजाजी श्री हरेश कुमार सक्सेना ने २६ अगस्त की शाम ६.३० बजे अपने नश्वर शरीर को त्याग देवलोक के लिए महाप्रस्थान कर लिया ! उनके जाने के बाद नि:संदेह रूप से एक महाशून्य सा हम सबके जीवन में व्याप्त हो गया है लेकिन वह जीजाजी से जुड़ी अनेकों मधुर स्मृतियों के सौरभ से सुरभित और समन्वित है जैसे किसी पावन अनुष्ठान के बाद समूचा घर अगर कपूर की सुगंध से गमक उठता है !
हमारे जीजाजी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे ! उनका सारा जीवन अध्ययन अध्यापन में बीता ! मध्य प्रदेश के विभिन्न स्थानों में वे उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में और पी जी बी टी कॉलेज में प्रिंसीपल के पद पर कार्यरत रहे लेकिन इसके साथ ही वे एक कुशल तैराक, बहुत ही शानदार खिलाड़ी, एक सिद्धहस्त शिकारी और बहुत ही मधुर एवं सुरीले गायक भी थे ! बैडमिन्टन कोर्ट में जब वो बिजली की तरह पूरे कोर्ट को कवर करते हुए शॉट पर शॉट देते थे तो दर्शक हैरानी से दाँतों तले उँगलियाँ दबा लेते थे ! उन्हें हराना आसान नहीं होता था !
तैरने में उनका कोई सानी नहीं था ! खुली नदी में तैरना उन्हें बहुत पसंद था और चुटकियों में वे क्षिप्रा का चौड़ा पाट इधर से उधर पार कर लेते थे ! मुझे भी तैरना उन्होंने ही सिखाया था ! मुझे याद है छोटे थे हम और हमसे वो कहते थे, “कूद जाओ साधना पानी में” और तैरना न जानते हुए भी घाट की ऊँची मुँडेर से हम पानी में छलाँग लगा देते थे और जीजाजी नदी के किसी भी हिस्से में होते थे हमें झट से आकर गोते खाने पहले ही बचा लेते थे ! फिर पूछते, “ऐसे ही कूद गयीं ! तुम्हें डर नहीं लगता ?” हमारा जवाब होता, “हम जानते थे आप हमें डूबने नहीं देंगे !” ऐसे थे हमारे जीजाजी ! उन पर हमें हिमालय जितना भरोसा था ! हमारा तो जीवन ही उनके कारण बचा हुआ है वरना सालों पहले अरब सागर के जल जंतुओं का हम भोजन बन चुके होते ! सन १९६४ की बात है ! हायर सेकेंडरी की परीक्षाओं के बाद हमारा पूरा परिवार जगन्नाथ पुरी घूमने गया ! मम्मी, बाबूजी, हम तीनों भाई बहन, जीजाजी और उनकी बड़ी बेटी स्मिता जो उस वक्त साल सवा साल की होगी ! समुद्र से हमारा यह पहला साक्षात्कार था ! जगन्नाथ पुरी का तट रेतीला है और समुद्र की लहरें बहुत ही तीव्र और डरावनी ! हम समुद्र से काफी दूर आराम से रेत पर बैठे हुए आस पास का नज़ारा ले रहे थे कि अचानक से बहुत बड़ी सी लहर आई और हमारे नीचे की रेत के साथ साथ हमें भी बहा ले चली ! जीजाजी हमसे काफी दूर आगे घुटनों तक गहरे पानी में खड़े हुए थे ! हमें बहते देख एकदम से चीख पुकार मच गयी ! जीजाजी ने तुरंत पलट कर हमें सम्हाला ! हमें याद है हम जीजाजी का हाथ पकड़ कर पेंडुलम की तरह झूल रहे थे ! अगर वो न होते तो हम समुद्र की अतल गहराइयों में समा गए होते ! इसीलिये हमारे हीरो थे हमारे जीजाजी !
शिकार उनका जुनून था ! शिकार से जुड़े उनके किस्से इतने रोमांचक होते थे कि हम सब हैरानी से मुँह खोले घंटो सुना करते ! हवा में उड़ती चिड़िया और पानी में तैरती मछली को भी वो मार देते थे ज़मीन पर चलने वाले प्राणियों पर तो उनका निशाना अचूक होता ही था ! उनके घर में दीवारों पर हमेशा लाइसेंसी बंदूकें किसी आर्ट पीस की तरह सजी रहतीं और जब वो उनकी सफाई और सर्विसिंग करते तो सब बच्चों के लिए कौतुहल और मनोरंजन का बहुत ही बढ़िया शगल हो जाता ! हाँलाकी जीजी के साथ कई बार इसी बात पर उनकी खटपट भी हो जाती लेकिन खाने में सिर्फ मीठा ही मीठा हो तो आनंद कहाँ आता है ! थोड़ा नमकीन तो ज़रूरी होता है ना संतुलन के लिए ! इसके बाद फिर रूठने मनाने में भी तो एक अपूर्व आनंद होता था !
जीजाजी एक बहुत ही अच्छे पुत्र, भाई, पति और पिता थे ! उन्होंने हमेशा अपने परिवार को सर्वोपरि रखा और हर भूमिका में सफलतापूर्वक अपने दायित्वों को बखूबी निभाया ! हमें इस बात का बहुत ही गर्व है कि अपने सभी बच्चों को उन्होंने बहुत ही सुयोग्य, संस्कारवान और सुशिक्षित बनाया और वे सभी अपने अपने जीवन में सफल एवं स्थापित हैं !
जीजाजी एक कुशल वक्ता, एक बहुत ही सुरीले गायक और उच्च कोटि के एंकर भी थे ! उज्जैन में कहीं भी कोई समारोह हो संचालन के लिए अक्सर उन्हें ही याद किया जाता था ! मुकेश और के. एल. सहगल उनके पसंदीदा गायक थे और उनके गीत उनकी आवाज़ पर बहुत सूट भी करते थे ! संगीत का कोई भी कार्यक्रम उनके गीतों के बिना पूरा नहीं होता था ! वो शेर-ओ-शायरी के भी बहुत शौक़ीन थे ! अभी इसी साल होली से पहले जब मैं उनसे मिलने गयी थी तब अस्वस्थ होते हुए भी उन्होंने मेरे साथ मुकेश के कई गीत दोहराए थे ! ‘सारंगा तेरी याद में’ उनका फेवरेट गीत था ! यही गीत उन्होंने मेरे साथ उस दौरान कई बार गाया था !
अब तो यह गीत हम जब भी दोहराएंगे उन्हें याद करते हुए हमारे नयन भी बेचैन हो जायेंगे ! जीजाजी आप जहाँ भी रहें हमेशा इसी तरह अपने आसपास के वातावरण को सुगन्धित और पवित्र बनाए रखियेगा हमें विश्वास है वह महक हम तक भी ज़रूर पहुँच जायेगी ! हम हमेशा आपको अपनी स्मृतियों में जीवंत रखेंगे ! हमारा सादर नमन एवं अश्रुपूरित श्रद्धांजलि स्वीकार करिये !
साधना वैद
संस्मरण ही हमारे जीवन की अमूल्य निधियाँ हैं।
ReplyDeleteआपके पितृ तुल्य गोलोकवासी जाजी स्व. हरेश कुमार सक्सेना जी को विनम्र् श्रद्धांजलि।
सादर आभार शास्त्री जी !
Delete🙏🙏 विनम्र श्रद्धांजलि ।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद संगीता जी !
Deleteसादर नमन।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद विश्वमोहन जी !
Deleteदीदी ऐसे व्यक्ति ईश्वर से विशेष कृपा लेकर आते है .सादर नमन ।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद गिरिजा जी !
Deleteविनम्र श्रद्धांजलि।
ReplyDeleteसादर नमन।
हार्दिक धन्यवाद श्वेता जी !
Deleteविनम्र श्रद्धांजलि। सादर नमन।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद विकास जी !
Deleteविनम्र श्रद्धांजलि
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद केडिया जी !
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