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Friday, July 21, 2023

अगर सा महकता अगरतला – 14

 




















 14 मई – अगरतला के शेष दर्शनीय स्थल

अगरतला का हर दर्शनीय स्थल बहुत ही खूबसूरत और आकर्षक तो है ही अपने साथ इतनी ऐतिहासिक एवं सांकृतिक विरासत को भी समेटे हुए है कि अगर उसके बारे में बिना जाने ही बस उसका ज़िक्र भर कर दिया जाए तो यह तो बहुत नाइंसाफी होगी ! कई स्थान ऐसे थे जहाँ जाने पर हम अन्दर नहीं जा सके लेकिन बाहर से ही उस स्थान की भव्यता का नज़ारा कर के बहुत आनंद की अनुभूति हुई ! ऐसा ही एक स्थान था पोर्तुगीज़ चर्च जहाँ हम हेरीटेज पार्क को देखने के बाद पहुँचे !

पोर्तुगीज़ चर्च
यह राज्य की एकमात्र पुर्तगाली बस्ती मरियमनगर में स्थित त्रिपुरा का पहला कैथोलिक मदर चर्च है और इस क्षेत्र के लोगों के लिए यह चर्च बहुत महत्व रखता है !  चर्च के फादर इब्राहिम ने एक बार इस चर्च के बारे में बताते हुए कहा था कि यह पहला कैथोलिक मदर चर्च है और इसी चर्च से कैथोलिक मान्यता पूरे त्रिपुरा में फैली ! पाँच शताब्दी पहले पुर्तगाली यहाँ आये और बस गये ! अपनी सैन्य क्षमता को मजबूत करने के लिए तत्कालीन त्रिपुरा राजा के निमंत्रण पर वे यहाँ आये थे ! वे लगभग 60 पुर्तगाली परिवार थे जिनके वंशज अभी भी इस क्षेत्र में रहते हैं ! उस समय इस क्षेत्र में कोई प्रीस्ट (पुजारी) नहीं था !  कभी-कभी ढाका के प्रीस्ट (पुजारी) यहाँ आते थे और धार्मिक विधियों का निर्वहन किया करते थे !  बाद में  1937 में  मरियमनगर चर्च का निर्माण किया गया और डॉन बॉस्को  होली क्रॉस के फादरों ने इसे चलाने में अपना सहयोग और समर्थन दिया ! त्रिपुरा में आ बसे पुर्तगालियों को तत्कालीन माणिक्य राजाओं ने भाड़े के सैनिकों के रूप में काम पर रखा था ताकि त्रिपुरा रियासत को पास के अराकान के मोग लुटेरों द्वारा बार-बार किये जाने वाले हमलों से बचाने में मदद मिल सके ! वास्को डी गामा के बेड़े को कालीकट का रास्ता मिल जाने के बाद  पुर्तगाली व्यापारियों और समुद्री डाकुओं ने भी तट के आसपास बंगाल की ओर जाने का रास्ता ढूँढ लिया और कई लोग चटगाँव, सैंडविप द्वीप और फरीदपुर (वर्तमान बांग्लादेश में) में बस गए ! त्रिपुरा के शासकों ने चटगाँव में बसे कुछ लोगों को शाही सेना में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया ! उनमें से कई ने गनर और राइफलमैन के रूप में काम किया ! राजा अमर माणिक्य बहादुर (1577-1586) ने चटगाँव और नोआखली से अपनी सेना में पुर्तगाली भाड़े के सैनिकों के एक समूह को शामिल किया था ! बाद में वे त्रिपुरा की तत्कालीन राजधानी रंगमती (उदयपुर) में बस गए ! 1760 में महाराजा कृष्ण माणिक्य द्वारा अपनी राजधानी अगरतला स्थानांतरित करने के बाद उन्हें भी मरियमनगर में लाकर बसाया गया ! त्रिपुरा के अंतिम शासक के पुत्र, प्रद्योत किशोर माणिक्य देबबर्मन, ने बताया कि पुर्तगाली भाड़े के सैनिक अपने साथ सामरिक युद्ध कौशल का काफी ज्ञान लेकर आए थे क्योंकि वे आग्नेयास्त्रों का उपयोग करने में पारंगत थे !

छोटा सा चर्च देखने में बहुत ही खूबसूरत है ! चारों तरफ खूबसूरत फूलों से सुरभित बगीचे से घिरा यह चर्च भी उस वक्त बंद था जब हम इसे देखने पहुँचे ! लेकिन चारों ओर घूमने पर एक खिड़की का दरवाज़ा खुला हुआ था ! हमने अन्दर हॉल का नज़ारा उसी खिड़की से झाँक के कर लिया और अन्दर स्थापित मूर्ति की तस्वीरें भी खींच लीं ! बाहर बरामदे में कलात्मक ढंग से नीले रंग के पेंटेड खम्भे थे और एक तरफ प्रभु यीशु एवं दूसरी तरफ मदर मेरी की आकर्षक पेंटिंग्स लगी हुई थीं ! यहाँ का वातावरण बहुत ही शांत एवं पवित्र लग रहा था ! यहाँ भी सबने अच्छी तरह से फोटोग्राफी का आनंद लिया !

इस्कॉन टेम्पल

चर्च से बाहर निकलते निकलते रिमझिम रिमझिम बारिश होने लगी थी ! हम जब इस्कॉन मंदिर पहुँचे तो सड़कों पर खूब पानी हो गया था ! सम्हल सम्हल कर चलना पड़ रहा था कि कपड़ों पर कीचड़ के छींटे न आ जाएँ और जूते चप्पल कीचड में बहुत अधिक न सन जाएँ ! अन्दर मंदिर में बहुत भीड़ नहीं थी ! मुम्बई, दिल्ली, उज्जैन, वृंदावन आदि शहरों के इतने सुन्दर और भव्य इस्कॉन मंदिर देख चुके हैं कि उनकी तुलना में यह मंदिर बहुत छोटा और साधारण सा ही लगा लेकिन महत्त्व बाहर के भवन का नहीं होता है उस भवन में स्थापित भगवान् का होता है जिनके समक्ष हमारा सर स्वयं ही श्रद्धा से झुक जाता है ! यह मंदिर शहर के बीच में मठ चौमुही में स्थित है ! क्योंकि यह बाज़ार के बीच में है इसलिए इसके आसपास कोई खुला स्थान नहीं है और इसका आकार प्रकार भी बहुत छोटा है ! अन्दर भगवान् जगन्नाथ, बलराम एवं सुभद्रा की सुन्दर मूर्तियाँ स्थापित हैं ! इनके अलावा स्वामी प्रभुपाद की प्रतिमा भी एक आसन पर विराजी हुई है ! मंदिर के अन्दर छत पर सुन्दर चित्रकारी है जो दर्शनीय है ! बाहर की तरफ प्रसाद, धार्मिक पुस्तकों एवं गिफ्ट्स की दूकान भी है जहाँ कम कीमत पर अच्छा सामान मिल रहा था ! यहाँ से मैंने भी कुछ मालाएँ खरीदीं ! यहाँ आने के बाद बहुत अच्छा लगा ! सुबह से चलते चलते बहुत थक गए थे ! आज के दिन का आख़िरी दर्शनीय स्थल और बाकी रह गया था ! अलबर्ट एक्का वार मेमोरियल ! बस अब हम उसे ही देखने जा रहे थे !

अलबर्ट एक्का वार मेमोरियल

यह वह स्थान है जो हमारे दिलों को अकथनीय गर्व, पीड़ा एवं संतोष से भर देता है ! यहाँ हमारे उन वीर सेनानियों की कुर्बानियों और शाहदत के किस्से अंकित हैं जिन्होंने सन् 1971 के बांग्लादेश युद्ध के समय हँसते-हँसते अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे ताकि हम अपने घरों में सुख की नींद सो सकें ! इन वीर सैनिकों के सम्मान में अपने आप ही सर श्रद्धा से झुक गया और सीना गर्व से चौड़ा हो गया ! लेकिन हमें सुख शान्ति से परिपूर्ण जीवन मिले उसके लिए ये वीर योद्धा कितनी कम उम्र में वीरगति को प्राप्त कर लेते हैं यह सोच कर ही मन पीड़ा से भर गया और आँखें नम हो गईं ! मरणोपरांत वीरता के सर्वोच्च सम्मान परम वीर चक्र को पाने वाले वीर सैनिक अलबर्ट एक्का की स्मृति में इस स्थान का नाम अलबर्ट एक्का वार मेमोरियल रखा गया है !

अलबर्ट एक्का की कहानी भी कम रोमांचक नहीं है ! झारखंड के गुमला जिले के जनजातीय बहुल गाँव जारी में जन्मे अल्बर्ट एक्का ने बांगलादेश युद्ध के दौरान पाकिस्तान की सीमा में घुस कर कई बंकर नष्ट किये थे ! बांग्लादेश तब स्वतंत्र देश नहीं था ! यह पूर्वी पाकिस्तान कहलाता था !

अलबर्ट एक्का के अदम्य साहस के कारण ही 1971 के युद्ध में भारत सरकार ने पाकिस्तान को भारी शिकस्त दी थी ! युद्ध के दौरान 15 भारतीय सैनिकों को मरता हुआ देख कर अलबर्ट एक्का बन्दर की तरह दौड़ते हुए टॉप टावर के ऊपर चढ़ गए और टॉप टावर की मशीनगन को कब्जे में लेकर अंधाधुंध फायरिंग से दुश्मन को तहस नहस कर दिया ! इस दौरान उन्हें भी कम से कम बीस पच्चीस गोलियाँ लगीं ! सारा शरीर गोलियों से छलनी हो चुका था लेकिन वो मोर्चे पर तब तक डटे रहे जब तक शरीर बेसुध होकर टॉप टावर से नीचे नहीं गिर गया ! 3 दिसंबर 1971 को इस वीर योद्धा ने देश की रक्षा करते हुए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया ! मरणोपरांत इन्हें देश के सर्वोच्च सैनिक सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया ! इनके सम्मान में इनके गाँव जारी में इनके पैतृक निवास को संग्रहालय में तब्दील करने की सरकार की योजना है ताकि आने वाली पीढ़ियाँ उनकी वीरता के बारे में जान कर प्रेरणा ले सकें !

इस वार मेमोरियल में बड़े ही सुन्दर सुन्दर सन्देश भी हैं जो शिलालेखों के रूप में अंकित हैं और तत्कालीन बांग्लादेश युद्ध के समय प्रयोग में लाये जाने वाले पैटन टैंक्स, तोप व अन्य युद्ध सामग्री का भी बड़ी सुन्दरता के साथ प्रदर्शन किया गया है ! इसका परिसर भी खूब लंबा चौड़ा है ! वहीं पर एक छोटे से स्टॉल पर बहुत ही बढ़िया चाय मिल रही थी ! शाम भी गहरा चुकी थी ! दिन भर घूम घूम कर सब खूब थक भी चुके थे और हल्की फुहार भी पड़ रही थी ! ऐसे में गरमागरम स्वादिष्ट चाय ने हम सबकी थकान को छू मंतर कर दिया ! सबने दो दो कप चाय पी ! बड़ा मज़ा आया ! मेमोरियल के सामने ही मुख्य मार्ग के चौराहे पर हमारे सर्वाधिक प्रिय संगीत निर्देशक सचिन देवबर्मन की ब्रोंज कलर की बड़ी सी प्रतिमा लगी हुई थी ! उसे देख कर मन में बर्मन दा के स्वरबद्ध किये हुए न जाने कितने सुरीले गीत गूँजने लगे ! यहाँ की यादों को अपने कैमरों में कैद कर हम लोगों ने फाइनली होटल की राह पकड़ी ! सूर्यास्त का समय हो रहा था ! अस्त होते होते सूरज दादा अपना तेज दिखाने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहे थे ! लिहाजा आसमान में बेहद खूबसूरत इन्द्रधनुष खिंच आया था ! होटल पहुँच कर कार से नीचे उतर कर मैं बड़ी देर तक उस इन्द्रधनुष को ही देखती रही ! नज़रें हट ही नहीं रही थीं आसमान से !

आज जितनी थकान हो रही थी मन उतना ही प्रफुल्लित भी था ! अपने अपने कमरों में पहुँच कर फिर से चाय बिस्किट का एक राउंड और चला ! हमारी टीम लीडर संतोष जी की तबीयत कुछ खराब हो गयी थी ! उनके कमरे में जाकर कुछ देर उनके साथ और विद्या जी के साथ गप शप करते रहे ! फिर रचना जी और अंजना जी के कमरे में जाकर उनकी शिलौंग की पुलिस बाज़ार की शॉपिंग देखी ! रचना जी के हाथ में बहुत दर्द था ! उनका भी हाल चाल लिया ! डिनर टाइम तक समय बिताना ही था ! रात आठ बजे के लगभग हम सब लोग नीचे डाइनिंग हॉल में पहुँचे तो सारे बर्तन खाली थे ! पूछने पर उसने बड़ी पोलाइटली बताया कि आज का डिनर कॉम्प्लीमेंट्री नहीं था इसलिए बना कर नहीं रखा है लेकिन जो भी आर्डर देंगे वह बहुत जल्दी बन जाएगा ! हम सब भी जल्दी ही सोना चाहते थे ! आसान सा मीनू उसे बता दिया गया ! होटल में ठहरे अन्य मेहमानों के लिए जो बन रहा था हमने भी वही बता दिया ! खाना यहाँ का लाजवाब होता था ! बिलकुल गरमागरम खाना खाकर बहुत मज़ा आया ! इसके बाद अब कोई काम नहीं बचा था ! कमरे में जाकर बच्चों से बात करके सबके हालचाल ले लिए ! तसल्ली हो गयी और फिर जल्दी से निंद्रा देवी की शरण में जाने ही भलाई लगी ! सुबह जल्दी उठ कर अगरतला के शेष पर्यटन स्थलों को देखना था ! अब आप भी आराम करिए ! आज की पोस्ट को यहीं विराम देती हूँ ! कल ले चलूँगी आपको अपने साथ कुछ ऐसे स्थानों पर जिनके लिए अगरतला सारे संसार में जाना जाता है ! तो अब इजाज़त दीजिये मुझे ! अगली पोस्ट में जल्दी ही आपसे मुलाकात होगी ! शुभ रात्रि !

 

साधना वैद  

 

 


4 comments :

  1. बहुत सुंदर

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    1. हार्दिक धन्यवाद ओंकार जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  2. Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद एवं बहुत बहुत आभार आपका !

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