सुधा के नंदोई
नहीं रहे थे ! छोटे-छोटे पाँच बच्चों की कच्ची गृहस्थी छोड़ कर उन्होंने परलोक की
राह पकड़ ली ! सुधा का हृदय दुःख से विदीर्ण हो रहा था ! दीदी कैसे सम्हालेंगी सबको
! आज ननद जी को कचला घाट पर गंगा स्नान के लिए ले जाया जाना था ! बड़े परिवार में
छह सात देवरानी जिठानी के होते हुए भी दीदी के साथ सिर्फ सुधा के पति गौरव, उनके एक जेठ, एक देवर और एक बेटा ही गया ! सुधा को अजीब लग
रहा था ! वह साथ जाना चाहती थी लेकिन सबने जोर देकर उसे मना कर दिया ! “ऐसे में
औरतें नहीं जाती हैं साथ !”
सुधा मन मसोस
कर रह गयी ! हमेशा बड़े सलीके से सज धज कर रहने वाली दीदी ने जब अपने सभी सुहाग
चिन्हों को गंगा में विसर्जित कर गौरव की लाई हुई सफ़ेद साड़ी पहन कर घर में प्रवेश
किया तो घर की सारी विवाहित स्त्रियाँ कमरों में दरवाज़े बंद कर अन्दर बैठ गईं !
दीदी की देवरानी ने सुधा को भी बलपूर्वक अपने साथ ले जाना चाहा ! “चलो अन्दर तुम
भी ! अपशगुनी का मुँह अभी न देखो ! जो देख लेता है उसके साथ भी ऐसा ही होता है !”
सुधा का तन मन
सुलग उठा ! हर तरह से टूटी बिखरी दीदी को ऐसे कैसे नि:संग कर दे वह ! उसने पलक
झपकते ही दीदी को अपनी बाहों में बाँध लिया और उनकी गोद में मुँह छिपा सुबक पड़ी !
साधना वैद
ये बहुत अजीब लगता है। शादी विवाह में भी विधवा स्त्री को नहीं जाने दिया जाता। बहुत गलत प्रथा है।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद तिवारी जी ! इन्हीं गलत रिवाजों के प्रति मेरा विरोध दर्ज करती है यह लघुकथा ! आपका हार्दिक आभार !
Delete