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Friday, July 2, 2021

कितनी सुन्दर होती धरती

 



कितनी सुन्दर होती धरती, जो हम सब मिल जुल कर रहते

झरने गाते, बहती नदिया, दूर क्षितिज तक पंछी उड़ते

ना होता साम्राज्य दुखों का,  ना धरती सीमा में बँटती

ना बजती रणभेरी रण की, ना धरती हिंसा से कँपती !

पर्वत करते नभ से बातें, जब जी चाहे वर्षा होती

सूखा कभी ना पड़ता जग में, फसल खेत में खूब उपजती

निर्मम मानव जब जंगल की, हरियाली पर टूट न पड़ता

भोले भाले वन जीवों के, जीवन पर संकट ना गढ़ता

जब सब प्राणी सुख से रहते, एक घाट पर पीते पानी

रामराज्य सा जीवन होता, बैर भाव की ख़तम कहानी

पंछी गाते मीठे सुर में, नदियाँ कल कल छल छल बहतीं

पेड़ों पर आरी ना चलती, कितनी सुन्दर होती धरती !



साधना वैद


15 comments :

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०३-0७-२०२१) को
    'सघन तिमिर में' (चर्चा अंक- ४११४)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. हार्दिक धन्यवाद अनीता जी ! बहुत बहुत आभार आपका ! सप्रेम वन्दे !

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  2. बहुत सुंदर भाव, सुंदर कविता !

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    1. स्वागत है ऋता जी ! बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार आपका !

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  3. Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद संगीता जी ! बहुत बहुत आभार आपका ! सप्रेम वन्दे !

      !

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  4. सुन्दर रचना

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    1. हार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  5. सुन्दर कल्पना ।

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    1. हार्दिक धन्यवाद अनुपमा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  6. Replies
    1. स्वागत है सतीश जी ! बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार आपका !

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  7. क्या बात है!! कितनी सुन्दर कल्पना की आपने साधना जी। यदि ऐसा होता तो धरती पर राम राज्य ही होता। सद्भावना की आंकाक्षा संजोती रचना के लिए ढेरों बधाइयां और शुभकामनाएं 👌🙏🙏🌷🌷

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  8. पंछी गाते मीठे सुर में, नदियाँ कल कल छल छल बहतीं
    पेड़ों पर आरी ना चलती, कितनी सुन्दर होती धरती !///
    👌👌🙏🌷🙏🌷

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  9. भाव पूर्ण रचना

























    भावपूर्ण रचना |






















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