फैमिली कोर्ट के छोटे से कमरे में अधेड़ वय के पति पत्नी बैठे हुए थे ! पति अत्यंत क्षुब्ध और अप्रसन्न दिखाई दे रहा था पत्नी बेहद असंतुष्ट और दुखी ! मजिस्ट्रेट शालिनी उपाध्याय बारीकी से उनके हाव भाव निरख परख रही थीं ! उन्होंने दोनों से इस उम्र में तलाक के लिए आवेदन करने का कारण पूछा –
शालिनी – “विवाह के पैंतीस साल बाद आप एक दूसरे से तलाक क्यों लेना चाहते हैं ?”
पति – “ये हद दर्जे की झगडालू, बदमिजाज़ और ज़िद्दी हो गयी हैं ! कोई भी लॉजिकल बात इन्हें समझ में नहीं आती ! घर का वातावरण बहुत ही खराब हो गया है ! मेरी कोई बात नहीं सुनतीं जीना दूभर हो गया है !”
पत्नी – “ये एकदम तानाशाह हो गए हैं ! मेरी किसी इच्छा का इनके आगे कोई मोल नहीं है ! सबको अपनी उँगली पर नचाना चाहते हैं ! ये जो चाहें जैसा चाहें बस वही हो घर में ! मैं बिलकुल तंग आ गयी हूँ घर नहीं जेल हो जैसे ! न कहीं घूमने जाना, न किसीसे मिलना जुलना न कभी कोई फिल्म देखने या चाय कॉफ़ी पीने जाना ! पूछिए ज़रा इनसे मेरे लिए कभी कोई उपहार ये कितने साल पहले लाये थे ! हमसे अच्छे तो जेल के कैदी होते हैं अपना काम ख़त्म कर एक दूसरे से हँस बोल तो लेते हैं ! इन्होंने तो खुद अपना व्यवहार ऐसा कड़क बना लिया है कि चहरे पे मुस्कान देखे हुए बरसों बीत गए ! कुछ कहो तो काटने दौड़ते हैं ! कोई भी तो नहीं है घर में जिससे बोल बतिया कर मन हल्का कर लूँ ! बेटियाँ अपनी ससुराल की हो गयीं और बेटे अपनी नौकरी और बहुओं के !” बोलते बोलते पत्नी की आँखों से धाराप्रवाह गंगा जमुना बह रही थी !
पति ने फ़ौरन कमीज़ की जेब से काम्पोज़ की गोली निकाल कर जल्दी से पत्नी के मुँह में रखी और सामने रखा पानी का गिलास उसके होंठों से लगा दिया !
पति - “यही तो है मुसीबत है ज़रा ज़रा सी बात पर रोना धोना शुरू हो जाता है और बी पी बढ़ा लेती हैं ! खुद तो पट हो जाती हैं हम रात रात भर पागलों की तरह सम्हालते फिरें !” झल्लाते हुए पति बोला !
पत्नी – “और आपका ख़याल कौन रखता है ? सारी सारी रात पीठ की सिकाई कौन करता है ? घुटनों में तेल की मालिश कौन करता है ? मेरा किया तो कुछ नज़र ही नहीं आता ना आपको !” पत्नी का रोना और तीव्र हो गया था !
पति – “अच्छा अच्छा ठीक है ! चलो घर चलें ! जैसे इतनी गुज़र गयी लड़ते झगड़ते बाकी भी गुज़र ही जायेगी ! न मुझे तुझ सी कोई और मिलेगी न तुझे मुझसा कोई और !” मजिस्ट्रेट की ओर देखे बिना दोनों एक दूसरे की बाहों का सहारा लिये कमरे से बाहर आ गये थे !
चित्र - गूगल से साभार
साधना वैद
ये तो घर घर का किस्सा लिख दिया शायद ।
ReplyDeleteरोचक लघु कथा ।
हार्दिक धन्यवाद संगीता जी ! हृदय से आभार आपका !
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 25 जुलाई 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी ! सप्रेम वन्दे !
Deleteहर घर की कहानी बयां करती रोचक लघुकथा।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद ज्योति जी ! दिल से आभार आपका !
Deleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(२५-०७-२०२१) को
'सुनहरी धूप का टुकड़ा.'(चर्चा अंक-४१३६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार अनीता जी ! सप्रेम वन्दे !
Deleteसाधना जी ! नमन आपको 🙏🙏 आपकी इस जीवंत लघुकथा/घटना की 'लॉजिकल' बातों (संवाद) के कारण हमारा, 35 सालों क्या .. 26 सालों में ही कल, सोमवार को "कारगिल दिवस" के दिन होने वाला तलाक़ रुक गया .. अब समझ में आ गयी बातें कि एक हम ही नहीं हैं 'लॉजिकल' लड़ाई लड़ के दाम्पत्य जीवन जीने वाले .. श्रीमती शालिनी उपाध्याय और श्रीमान उपाध्याय की भी भी जोड़ी है .. दुनिया में ...
ReplyDelete(N. B. - उपरोक्त मेरी निजी बातों को छोड़ कर , सारी बातों को सही समझा जाए .. बस यूँ ही ...:) :))
हा हा हा ! चलिए मेरी कथा को पढ़ने के बाद कोई निर्णय तो सही लिया गया ! हार्दिक धन्यवाद सुबोध जी ! लघुकथा आपको पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हाक ! दिल से आभार आपका !
Deleteपति-पत्नी में लाख खटपट हो लेकिन उनसे ज्यादा कोई भी एक-दुसरे का ख्याल रखने वाला और कोई नहीं मिलेगा, यह बात जो जितनी जल्दी समझ जाय उतना अच्छा होता है उसके जीवन के लिए
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रेरक प्रस्तुति
हृदय से धन्यवाद कविता जी ! बिलकुल सहमत हूँ आपसे ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteअरे वाह वाह। क्या कहें । अप्रीमत प्रेम कहानी को इतने कम शब्दों में समेटने के लिए ं वृहद उदार मन स्थिती आज देखने को कम मिलती है। साधुवाद दूं या कृतज्ञ हो नतमस्तक होउं असंमजस में हूं ।
ReplyDeleteपारिवारिक उधेड़बुन और तारमय सांमाजस्य का अदभुत संयोजन व उदाहरण। सच में जीवन परिपाटी में आखरी के समय में ऐसे ही प्रेम घनत्व की जरुरत है।
उत्तम कृति हेतु प्रणाम। सााधना जी
हार्दिक धन्यवाद बलबीर जी ! आपकी इतनी आत्मीय प्रतिक्रिया को पाकर अभिभूत हूँ ! लघुकथा आपको अच्छी लगी मेरा श्रम सार्थक हुआ ! आपका हृदय से बहुत बहुत आभार !
Deleteहृदयस्पर्शी कथा ।
Deleteहार्दिक धन्यवाद अमृता जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteअहा ।बेहद खूबसूरत सी कहानी । पत्नी पति यूँ ही खटपट करते जिंदगी के दिन बीता लेते है एक दूजे के साथ । प्यार की ये भी एक बानगी है ।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद सुनीता जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteहार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
ReplyDeleteबहुत सुंदर और सत्य रचना
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आपका ! बहुत बहुत आभार !
Deleteसत्य के बहुत नजदीक रचना |
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जी ! बहुत बहुत आभार !
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