रात
कस कर गाँठ लगी
अपने
ख़्वाबों की पोटली को
बड़े
जतन से एक बार फिर
मैंने
खोला है !
कभी
मैंने ही अपने हाथों से
इसे
कस के गाँठ लगा
संदूक
में सबसे नीचे
डाल
दिया था कि आगे
फिर
कभी यह मेरे हाथ न आये !
शायद
डर लगा होगा
नन्हें,
सुकुमार, सलोने सपने
पोटली
से बाहर खिसक
मेरी
आँखों के सूने दरीचों में
टहलने
के लिये ना चले आयें !
और
नींदों से खाली
मेरी
जागी आँखों में
इन
सपनों की उंगलियाँ थाम
व्योम
के पार कहीं उस
सतरंगी
दुनिया के
इन्द्रधनुषी
आकाश में
विचरण
करने की साध
एक
बार फिर से
जागृत
ना हो जाये
जिसे
बहुत पहले मैंने
अपने
ही हाथों से अपने
मन
के किसी कोने में
बहुत
गहराई से दबा दिया था !
लेकिन
कल रात
संदूक
के तल से मुझे
किसीके
दबे घुटे रुदन की
आवाज़
सुनाई दे रही थी ,
वो
मेरे सपने ही थे जो
वर्षों
से पोटली में निरुद्ध
प्राणवायु
के अभाव में
अब
मुक्त होने के लिये
जी
जान से छटपटा रहे थे
और
शुद्ध हवा की एक साँस
के
लिये मेरे अंतर का द्वार
खटखटा
कर मेरे सोये हुए
स्वत्व
को जगा रहे थे !
इनकी
पुकार मैं अनसुनी
नहीं
कर सकी और मैंने
पोटली
खोल उन सपनों को
कल
मुक्त कर दिया
अनन्त
आकाश में उड़ने के लिये
जी
भर कर ताज़ी हवा में
साँस
लेने के लिये और
कभी
चुपके से
मेरी
आँखों के दरीचों में आ
हौले
से मेरी पलकों को सहला
मेरे
नींदों में इन्द्रधनुषी रंग
भरने
के लिये !
कहो, ठीक किया ना मैंने !
साधना
वैद
कल कुछ सपने उड़ते हुए मेरी आँखों में समा गए
ReplyDeleteगर्म आंसू की बूंद तकिये पर गिरी
मन को सुकून मिला
तो सपनों ने पूछा - मुझसे दोस्ती करोगी ?
करुँगी न .... अच्छा किया आपने यादों से भरी सपनों की पोटली खोल दी
बिलकुल सही किया , कब तक आखिर हम किसी ख्वाब को बंद कर रख सकते हैं क्योंकि वह घुट कर दम तोड़ देंगे . न जीने दें तो उन्हें पक्षी तरह उड़ ही जाने दें . कहीं और पेंगे भर कर जिन्दा तो रहेंगे
ReplyDeleteकभी चुपके से
ReplyDeleteमेरी आँखों के दरीचों में आ
हौले से मेरी पलकों को सहला
मेरे नींदों में इन्द्रधनुषी रंग
भरने के लिये !
कहो, ठीक किया ना मैंने !
बहुत सही ... यही एक निराकरण था ... नन्हें, सुकुमार, सलोने सपनों को आखिर कब तक कै़द रखा जा सकता था ... भावमय करते शब्द अनुपम प्रस्तुति
सादर
bhavmayi ..bahut sunder
ReplyDeletebadhiya ji
ReplyDeleteएक दम ठीक किया दी....
ReplyDeleteक्यूंकि सपने कभी मरते नहीं....बस यूँ ही सिसक सिसक कर इंतज़ार करते है अपने स्वतंत्र होने का...
बहुत प्यारी रचना..
सादर
अनु
मन की कितनी ही गहराई में दफन करना चाहें सपनों को वो आँखों की कोरों पर फिर सज जाते हैं ,भले ही वो कभी पूरे न हों पर खुल कर सांस लेते हैं ..... बहुत सुंदर रचना ... शायद यह व्यथा हर नारी की हो ...
ReplyDeleteबिलकुल ठीक किया आपने...खुल के सांस लेने दीजिये उन्हें जी भर कर ताज़ी हवा में... सुन्दर भाव... आभार
ReplyDeleteकब तक ख्वाबों को दबाये रखेंगे, उड़ने दें उनको भी खुली हवाओं में...बहुत सुन्दर रचना...
ReplyDeleteबंद पोटली खोल कर अच्छा किया नहीं तो दम ही घुट जाता |घुटन में जीने से तो अच्छा है शुद्ध हवा में जीना |
ReplyDeleteबढ़िया रचना |
आशा
सपनों के एइस पोटली को खुलना ही था , कब तक बंद होती ...
ReplyDeleteताजा हवा मुबारक !
अपने ही हाथों से अपने
ReplyDeleteमन के किसी कोने में
बहुत गहराई से दबा दिया था !
लेकिन कल रात
संदूक के तल से मुझे
किसीके दबे घुटे रुदन की
आवाज़ सुनाई दे रही थी ,
वो मेरे सपने ही थे जो
वर्षों से पोटली में निरुद्ध
प्राणवायु के अभाव में
अब मुक्त होने के लिये
जी जान से छटपटा रहे थे.....superb
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबढ़िया |
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
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ख़्वाबों को दबाना नहीं ... उन्हें जीने का प्रयास करना चाहिए ... जीवन तभी तो है ... इसलिए हो तो है ...
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