आज भी खड़े हो तुम
उसी तरह मेरे सामने
एक मुखौटा अपने मुख पर चढ़ाए
नहीं समझ पाती
क्या छिपाना चाहते हो तुम मुझसे
क्यों ज़रुरत होती है तुम्हें
मुझसे कुछ छिपाने की !
जबकि प्रेम की सबसे बड़ी और
सबसे पहली शर्त होती है
पारदर्शिता, विश्वास और ईमानदारी !
इस मुखौटे के आर पार
तुम्हारा असली चेहरा देखने की
मैंने बहुत कोशिश की कई बार
लेकिन सफल न हो सकी !
तुम्हारी बातों से ,
तुम्हारे स्वरों के आरोह अवरोह से
तुम्हारे चहरे को कल्पना में देखा करती हूँ !
फिर तुम्हारे मुखौटे के आर पार
झाँक तुम्हारे असली चहरे से
उसे मिलाना चाहती हूँ !
बताओ ना यह मुखौटा
कब उतारोगे तुम ?
मुझे सत्य के दर्शन करने हैं !
तुम्हारा असली चेहरा देखना है मुझे
बिना किसी मुखौटे के !
बिना आर पार की इस
ताकाँ झाँकी के
ज़द्दोजहद के !
फिर वह सत्य कितना भी
कड़वा क्यों न हो !
साधना वैद
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (20-11-2019) को "समय बड़ा बलवान" (चर्चा अंक- 3525) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत गहरी सोच |
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जीजी ! आभार बहुत बहुत !
Deleteवाह!
ReplyDeleteगहन अभिव्यक्ति सुंदर सृजन 👌
सादर नमन आदरणीया मैम 🙏
हार्दिक धन्यवाद आँचल जी ! आभार आपका !
Deleteसच मुखौटों के पीछे का प्रेम पानी के बुलबुले की तरह है, जिसका कोई अस्तित्व नहीं होता
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
बहुत बहुत आभार कविता जी ! हृदय से धन्यवाद !
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार २० मार्च २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी ! सप्रेम वन्दे !
Deleteप्रेम में एक दूसरे को सम्पूर्ण सौंप दिया जाता है।
ReplyDeleteफिर एक दूसरे से छुपाना क्या
और सत्य को जानने की ललक क्या।
कई बार मात्र समझौते को प्रेम समझ बैठते हैं।
बहुत उम्दा रचना।
एकदम ललनटोप।
नई रचना- सर्वोपरि?
हार्दिक धन्यवाद रोहितास जी ! आभार आपका !
Deleteजबकि प्रेम की सबसे बड़ी और
ReplyDeleteसबसे पहली शर्त होती है
पारदर्शिता, विश्वास और ईमानदारी।
इस शर्त पर खरा उतरनेवाला प्रेम तो नसीबवालों को ही मिलता है ना दी ?
सादर, बहुत सा स्नेह आपके लिए।
हार्दिक धन्यवाद मीना जी ! रचना आपको अच्छी लगी मेरा लिखना सफल हुआ ! आभार आपका !
Deleteबहुत मार्मिक मनुहार साधना जी | विशवास प्रेम की सबसे पहली शर्त और शायद आखिरी भी| प्रेमातुर लेकिन विकल नारी मन की मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति | हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई सुंदर लेखन के लिए |
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका रेणु जी ! हृदय से धन्यवाद !
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार(०३-०५-२०२०) को शब्द-सृजन-१९ 'मुखौटा'(चर्चा अंक-३६९०) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार अनीता जी ! सप्रेम वन्दे !
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ReplyDeleteगहरी संवेदना लिए सुंदर सृजन ,सादर नमन साधना दी
हृदय से बहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी ! हार्दिक धन्यवाद !
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