कब तक तुझसे सवाल करेंगे
और कब तक तुझे
कटघरे में खड़ा करेंगे !
नहीं जानते तुझसे
क्या सुनने की
लालसा मन में
करवटें लेती रहती है !
ज़िंदगी ने जिस दहलीज तक
पहुँचा दिया है
वहाँ हर सवाल
गैर ज़रूरी हो जाता है
और हर जवाब बेमानी !
अब तो बस एक
कभी ना खत्म होने वाला
इंतज़ार है
यह भी नहीं पता
किसका और क्यों
और हैं मन के सन्नाटे में
यहाँ वहाँ
हर जगह फ़ैली
सैकड़ों अभिलाषाओं की
चिर निंद्रा में लीन
अनगिनत निष्प्राण लाशें
जिनके बीच मेरी
प्रेतात्मा अहर्निश
भटकती रहती है
उस मोक्ष की कामना में
जिसे विधाता ने
ना जाने किसके लिये
आरक्षित कर
सात तालों में
छिपा लिया है !
साधना वैद
आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार रवीन्द्र जी ! सादर वन्दे !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना |
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जीजी ! आभार आपका!
Deleteविचारणीय
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद शास्त्री जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteहार्दिक धन्यवाद ओंकार जी! आभार आपका !
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