सोचती हूँ
आज तुम्हें अपनी दिलदारी से
रू-ब-रू करा ही दूँ
तुम भी तो जानो
कहाँ मिलेगा तुम्हें
कोई दिलदार मेरे जैसा !
आज बाँटना चाहती हूँ तुमसे
कुछ भूली सी यादें
कुछ भीगे से पल
कुछ छिटकते से आज
कुछ छूटे से कल
कुछ रुसवा सी रातें
कुछ गुमसुम से दिन
कुछ झूठे से लम्हे
कुछ सच्चे पल छिन
कुछ कड़ुआती आँखें
कुछ सीली सी आग
कुछ धुँधलाते रस्ते
कुछ भूले से राग
कुछ रूखे से मौसम
कुछ टूटे से ख्वाब
कुछ तीखे से जुमले
कुछ हटते नकाब
और इस सब के बीच
कुछ खुले से तुम
कुछ छिपे से हम
कुछ ढके से तुम
कुछ उघड़े से हम
कुछ मौन से तुम
कुछ मुखर से हम
कुछ सख्त से तुम
कुछ पिघले से हम
कुछ सिमटे से तुम
कुछ बिखरे से हम
कुछ सुलझे से तुम
कुछ उलझे से हम
कुछ अपने से तुम
कुछ बेगाने से हम
बोलो कौन सा हिस्सा
तुम लेना चाहोगे ?
दोनों हिस्सों में
अब कोई फर्क नहीं है
जो लेना चाहो ले लो !
क्योंकि ज़िंदगी के इस मोड़ पर
किसी भी हिस्से का हासिल
अब सिर्फ दर्द ही तो है !
फिर चाहे वह
तुम्हारा नसीब हो
या फिर हमारा
क्या फर्क पड़ता है !
साधना वैद
बहुत सुन्दर लिखा है |
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जी ! आभार आपका !
Deleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteआपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे!
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
१६ मार्च २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बेहतरीन रचना
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आपका अनीता जी ! दिल से आभार !
Deleteहार्दिक धन्यवाद ओंकार जी ! आभार आपका !
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर भावपूर्ण रचना ,सादर नमन
ReplyDeleteआपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार कामिनी जी!
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