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Wednesday, March 4, 2020

ताशकंद यात्रा – 13 यात्रा का अंतिम दिवस



29 अगस्त की सुबह अपने पूरे जलवे के साथ ताशकंद की धरा पर उदित हो गयी थी ! आज स्वदेश लौटने की बारी थी ! उज्बेकिस्तान में बिताये ये चंद दिन हमें असीम ऊर्जा और आनंद से भर गए थे ! यहाँ के हँसमुख लोग, हरी भरी वादियाँ, खूबसूरत मंज़र और साफ़ सुथरे शहर सब दिल पर अपना आधिपत्य जमा चुके थे ! अपने ग्रुप के सभी साथियों से बिछड़ने का ख़याल जहाँ मन को भारी कर रहा था वहीं अपने देश, अपने घर, अपने बच्चों के पास जाने का ख़याल मन को प्रफुल्लित भी कर रहा था ! आज तो लोकल साईट सीइंग का कार्यक्रम था ! होटल से फाइनली चेक आउट करके सारा सामान लेकर ही यहाँ से निकलना था ! हमारी फ्लाईट रात के लगभग ग्यारह बजे की थी ! दिन भर हमें घुमाने के बाद हमारे टूर गाइड हमें एयर पोर्ट पर छोड़ कर हमसे फ़ाइनल विदा लेंगे यह तय हुआ था ! इस सारी प्रक्रिया में थोड़ा समय लगना था ! नाश्ते के बाद हमने ग्रैंड प्लाज़ा होटल के बाहर फव्वारों की, इमारतों की, साथियों की खूब तस्वीरें खींचीं !
आज हमें ताशकंद के लोकल बाज़ार ले जाया जाने वाला था ! सब खुश थे ! शॉपिंग का प्रस्ताव हो और महिलायें प्रसन्न ना हों यह तो हो ही नहीं सकता ! जब तक चेक आउट की औपचारिकताएं चल रही थीं ग्रुप के सभी सदस्यों ने राजकपूर के पियानो के साथ खूब तस्वीरें खिंचवाईं और किताबों का भी खूब आदान प्रदान हुआ ! होटल ग्रैंड प्लाज़ा को फाइनल बाय बाय करने के बाद हम शहर के भ्रमण के लिए चल पड़े !
ताशकंद शहर के केंद्र में स्थित है चौरसू बाज़ार ! बस से उतर कर हमें सड़क के दूसरी ओर जाना था ! सड़क पार करने के लिए चंद सीढ़ियाँ उतर कर सब वे से दूसरी ओर जाने की व्यवस्था थी ! न ट्रैफिक जाम का झंझट न ही दुर्घटना का भय ! यह बाज़ार अपने देश की हाट की याद दिला रहा था ! यहाँ पर ज़मीन पर, ठेले पर, छोटे छोटे खोखों पर ढेर सारी दुकानें थीं ! और रोज़ गृहस्थी में इस्तेमाल में आने वाली हर तरह की वस्तुएँ यहाँ मिल रही थीं ! सुर्ख सिकी हुई नान से लेकर, फल फ्रूट, साग सब्जियाँ भी और कपड़ों से लेकर खेल खिलौने, जूते चप्पल, साज श्रृंगार का सामान और बर्तन इत्यादि भी ! यहाँ दाम भी बहुत कम थे और बारगेनिंग की भी खूब गुंजाइश थी ! ऊँचे नीचे रास्तों पर बड़ी दूर तक यह बाज़ार फैला हुआ था ! सारे दुकानदार जिनमें स्त्री पुरुष किशोर वय के लड़के लड़कियाँ सभी शामिल थे एकदम साफ़ सुथरे कपड़ों में थे और प्रसन्नचित्त होकर अपना सामान बेच रहे थे ! यहाँ की साफ़ सफाई देख कर बरबस ही अपने देश की तुलनात्मक याद आ जाती थी ! सबने अपने मन माफिक खरीदारी की ! इसके बगल में एक बहुत ही सुन्दर मस्जिद या मदरसा बना हुआ है जिसकी गुम्बद बाज़ार से दिखाई देती हैं !
मैंने आपको बताया है ना कि यहाँ के लोग बहुत ही हँसमुख और मिलनसार हैं और हमारे देश के अभिनेता राजकपूर के बड़े ज़बरदस्त दीवाने हैं ! जैसे ही हम लोग बाज़ार पहुँचे एक उम्रदराज़ व्यक्ति ने हमारे श्रीमान जी के दोनों हाथ पकड़ लिए और बड़े तरन्नुम के साथ झूमते हुए राजकपूर का गीत “आवारा हूँ या गर्दिश में हूँ आसमान का तारा हूँ" गाना आरम्भ कर दिया ! मैं सच में अभिभूत थी ! वे सज्जन अपने समय के बड़े सुरीले गायक रहे होंगे ! जितना भी गाया यह गीत बहुत सुर में गाया उन्होंने !
थोड़ी बहुत खरीदारी करके हम लोग अपनी बस के पास आ गए ! ग्रुप के कुछ सदस्य पहले ही आ चुके थे ! मैंने यहाँ की करेंसी में चलने वाले सिक्कों के लिए अपने गाइड मोहोम्मद ज़ियाद को कुछ रुपये दिए थे ! ज़ियाद ने कुछ सिक्के मुझे दिए बाकी ग्रुप के अन्य सदस्यों को भी दे दिए ! सबके लिए यह भी एक अच्छा सोवेनियर रहा ! उज्बेकिस्तान में मुद्रा का इतना अवमूल्यन हो चुका है कि अब ये सिक्के चलन से बाहर हो चुके हैं ठीक वैसे ही जैसे हमारे देश में नए पैसे के सिक्के चलन से बाहर हो चुके हैं !
आज वापिस लौटना था ! देखने के लिए एक ही विशेष स्थान था अमीर तैमूर का संग्रहालय ! समय बहुत था ! काफी समय यहाँ बीत गया था ! दोपहर के भोजन का समय हो गया था ! सबके एकत्रित होते ही गाइड हम लोगों को एक बहुत ही सुन्दर होटल फ्लेवर्स में लेकर गए जहाँ हमारा लंच पहले से ही बुक था ! रास्ते में ताशकंद की रंगीन फूलों से सजी सड़कें और बाज़ार देखने में बहुत मज़ा आ रहा था ! कहीं कहीं कटिंग भी हो रही थी लॉन की ! सड़क किनारे बड़ी बड़ी क्यारियों में तिरछी धारियों में खिले रंग बिरंगे फूल बहुत सुन्दर लग रहे थे ! कोई दूर से देखे तो ऐसा लगे जैसे राजस्थानी लहरिये की साड़ी ज़मीन पर बिछी हुई है ! शहर की हरियाली और फूलों के रखरखाव ने मन मोह लिया !
खूबसूरत छोटा सा होटल फ्लेवर्स ! होटल की अंतर्सज्जा बहुत ही सुरुचिपूर्ण एवं सुन्दर ! खूबसूरत क्रॉकरी, विशुद्ध भारतीय स्वाद का सुस्वादिष्ट भोजन और बाहर की गर्मी को पराजित करती भोजन कक्ष की धीमी धीमी रोशनी और ठंडी हवा ! लगभग एक घंटे का लंच सबको पूरी तरह से तरोताज़ा कर गया !
यहाँ से निकल कर हमें जाना था अमीर तैमूर का संग्रहालय देखने ! बाहर से देखने में म्यूज़ियम की यह गोलाकार इमारत छोटी सी लग रही थी ! लेकिन ज़रा भी अनुमान नहीं था कि अन्दर से यह इतनी भव्य और सुन्दर होगी ! भवन के बाहर आकर्षक टाइल्स लगी खूबसूरत पगडंडी, सुन्दर बगीचा और थोड़ी देर बैठ कर सुस्ताने के लिए शानदार बेंचें ! यहाँ म्यूज़ियम का टिकिट स्वयं लेना था ! सोलह सौ सोम का एक टिकिट था ! संग्रहालय के हॉल में प्रवेश करते ही वहाँ की विशाल पेंटिग्स, खूबसूरत फानूस और सुन्दर वास्तु कला ने आकर्षित कर लिया ! यह दोमंज़िला इमारत है ! नीचे की मंज़िल में उज्बेकी शासकों और अमीरों की बड़ी बड़ी पेंटिंग्स लगी हुई हैं ! देखते देखते जैसे ही बाबर की पेंटिंग के सामने पहुँचे तो अनायास ही पैर ठिठक गए और मन में अनेकों ख़याल उमड़ने लगे ! यह वही विदेशी आक्रमणकारी था जिसने भारत के उस समय के शासक इब्राहिम लोदी को पानीपत के युद्ध में हरा कर दिल्ली पर कब्ज़ा किया था और जिसके वंशज पाँच सौ साल तक भारत पर राज्य करते रहे और मुगलिया शासकों के नाम से मशहूर हुए ! भारत में आने के बाद इनका वंश शायद इतना क्रूर और निर्मम नहीं रहा जितना बाबर के पूर्वज उज्बेकिस्तान में रहे थे ! इसका श्रेय कदाचित भारत की सभ्यता, दयालु संस्कृति और धार्मिक प्रवृत्तियों को भी जाता है ! इस वंश का आरम्भ मंगोलिया के कबीलों के सरदार चंगेज़ खान से होता है जिसने एक बार पूरे चीन, रूस और मध्य एशिया पर पूर्ण विजय प्राप्त कर ली थी ! जहाँ ये जाते थे वहाँ के सारे शहरों को ध्वस्त करके बच्चों और स्त्रियों को छोड़ पूरी आबादी का कत्ले आम कर देते थे और उनके कटे हुए सिरों की मीनार बना कर छोड़ जाते थे ! भारत में भी ऐसी मीनारें कई बार बनाई गयीं ! इसी चंगेज़ खान के वंशज तैमूर के म्यूज़ियम में हम लोग खड़े थे ! और बाबर भी इसी वंश का था ! बाबर ने उज्बेकिस्तान पर कभी शासन नहीं किया लेकिन उज्बेकिस्तान से कई गुना बड़े और धनवान देश भारत पर अपना आधिपत्य स्थापित किया और यहाँ सदियों तक राज्य किया इस बात पर उज़बेक लोग बहुत गर्व महसूस करते हैं और बाबर की बहुत इज्जत करते हैं !
भारत के ताजमहल का बहुत बड़ा मॉडल भी इस म्यूज़ियम में रखा हुआ है ! इसे भी उज़बेक लोग अपनी ही देन मानते हैं ! उनके अनुसार भारत में मुग़ल शासन काल में जो भी बाग़ बगीचे और इमारतें बनीं वे सभी उज्बेक स्थापत्य कला का ही उत्कृष्ट नमूना हैं ! उनमें ताजमहल, हुमायूँ टूम्ब, दिल्ली, आगरा और लाहौर की जामा मस्जिदें व अन्य अनेकों इमारतें शामिल हैं ! म्यूज़ियम में तमाम पेंटिग्स में युद्ध के दृश्य और उन दिनों इस्तेमाल किये जाने वाले अस्त्र शस्त्र ही चित्रित थे ! एक और विशेष बात जो मैंने नोट की किसी भी पेंटिंग में किसी भी स्त्री का एक भी चित्र नहीं था ! म्यूज़ियम में बहुत मज़ा आया !
अब तक उज्बेकिस्तान के ऐतिहासिक पर्यटन स्थल देखने के लिए हम सदियों पुराने अतीत के गलियारों में ही घूम रहे थे ! लेकिन अब वहाँ से निकल कर वर्तमान की आधुनिक दुनिया में लौट रहे थे ! अमीर तैमूर के म्यूज़ियम से हमको जाना था ताशकंद के आधुनिक शॉपिंग मॉल ‘नेक्स्ट’ में ! खूबसूरत जगह पर बना सुन्दर मॉल ! ऐसा लगा दिल्ली या अमेरिका ही पहुँच गए हैं ! हर जगह के मॉल एक से ही होते हैं ! अलका चौधरी जी हम लोगों के साथ थीं ! हर फ्लोर पर हमने खूब विंडो शॉपिंग की ! बढ़िया कॉफ़ी पी और बाहर आकर मॉल के सामने चल रहे फव्वारों का आनंद उठाया ! आसपास बच्चों के कई एक्टिविटी गेम्स चल रहे थे ! नन्हे नन्हे बच्चों के माता पिता रिमोट अपने हाथ में ले बच्चों को कार ड्राइव करने का प्रशिक्षण दे रहे थे ! एक उज्बेकी महिला अपने बहुत छोटे से बच्चे को गोद में लिए मेरे पास बैठी हुई थी ! मेरी दोस्ताना मुस्कराहट के प्रत्युत्तर में अपने छोटे से बच्चे को सीने पर हाथ रख कर सलाम वालेकुम करने का शऊर सिखा रही थी ! बहुत अच्छा लगा उसे देख कर !
यहाँ की ठंडक से सारी थकान उतर गयी थी ! अब तो सीधे एयर पोर्ट ही जाना था ! वहाँ सामान ऊपर पहुँचाना किसी चुनौती से कम नहीं था लेकिन ग्रुप के सभी साथियों ने एक दूसरे की बहुत मदद की और सबके सहयोग से हम सभी सामान के साथ ऊपर की मंजिल पर पहुँच गये ! सामान चेक इन कराने के बाद बचे हुए सोम को डॉलर्स में एक्सचेंज कराया ! बोर्डिंग लाउंज में बैठ कर सबसे गप शप की ! हवाई जहाज में बैठने से पहले सबसे टाटा बाय बाय की !
हवाई जहाज की खिड़की से ताशकंद इस समय बड़ा जाना पहचाना सा लग रहा था ! दिल्ली सुबह तीन बजे तक पहुँच गए थे ! इमीग्रेशन काउंटर के बाद किसीसे भेंट नहीं हो सकी ! ताशकंद की मधुर यादें लेकर हम भी अपने घर पहुँच गए ! इस यात्रा में इतना आनंद आया कि उसका खुमार अभी तक उतरा नहीं है !
साधना वैद

6 comments :

  1. नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 05 मार्च 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार रवीन्द्र जी ! सादर वन्दे !

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  2. बहुत सुन्दर लिखा है इसे पुस्तक रूप में पढ़ने को मिले तो बहुत अच्छा रहे |

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  3. हार्दिक धन्यवाद जीजी ! दिल से आभार आपका !

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  5. बहुत सुन्दर यात्रा रही मैम। म्यूजियम और बाज़ार जाना अच्छा लगा। बाज़ार की कुछ तसवीरें भी लेख के साथ संग्लन होती तो और अच्छा होता। आपने सही कहा कि शौपिंग मॉल अक्सर एक जैसे ही होते हैं। इस यात्रा में आपके साथ सफर करके बहुत मजा आया।

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