कितनी बातें थीं कहने को
जो हम कहते तुम सुन लेते
कितनी बातें थी सुनने को
जो तुम कहते हम सुन लेते !
लेकिन कुछ कहने से पहले
घड़ी वक्त की ठहर गयी
सुनने को आतुर प्राणों की
साँस टूट कर बिखर गयी !
टूट गयीं जो साँस तो देखो
किस्सा ही सब खतम हुआ
खतम हुआ किस्सा तो घुट कर
दो रूहों की मौत हुई !
फिरते हैं अब दोनों ही बुत
अपनी-अपनी धुरियों पर
जैसे कहीं दूर जाने को
सारी वजहें खतम हुईं !
क्यों जीते हैं सपनों में जब
स्वप्न टूट ही जाते हैं
खामखयाली में जीने की
सज़ा यही तजवीज हुई !
सपनों में जीने वालों का
एक यही तो हासिल है
दिन भी बीता रीता-रीता
रात बिलखते बीत गयी !
साँसों ने साँसों को बाँधा
बंधन फिर भी टूट गए
छूट गए जो साथी पीछे
मंज़िल उनसे दूर हुई !
साधना वैद
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(२१-०३-२०२०) को "विश्व गौरैया दिवस"( चर्चाअंक -३६४७ ) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
"साँसों ने साँसों को बाँधा
ReplyDeleteबंधन फिर भी टूट गए
छूट गए जो साथी पीछे
मंज़िल उनसे दूर हुई !"
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बहुत सुन्दर और मार्मिक।
हार्दिक धन्यवाद शास्त्री जी ! सादर वन्दे !
Deleteलेकिन कुछ कहने से पहले
ReplyDeleteघड़ी वक्त की ठहर गयी
सुनने को आतुर प्राणों की
साँस टूट कर बिखर गयी !
बहुत ही मार्मिक हृदयस्पर्शी सृजन।
हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद आपका सुधा जी ! सप्रेम वन्दे !
Deleteहार्दिक धन्यवाद ओंकार जी ! आभार आपका !
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अनीता जी ! स्वागत है आपका !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति |
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जीजी ! आभार आपका !
Deleteबेहद भावपूर्ण लाज़बाब सृजन दी ,सादर नमन
ReplyDeleteआपका हृदय से धन्यवाद कामिनी जी ! बहुत बहुत आभार !
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