दुःख मुझे भी होता
है
तुम्हारा अपमान,
तुम्हारा तिरस्कार
देख कर
दिल मेरा भी रोता है
सरे राह तुम्हारा
अशोभनीय
एवं विचित्र आचरण
देख कर !
माना कि विधाता से
भूल हुई
तुम्हें बनाने में
लेकिन उस भूल को इस
तरह
सरे आम उछालना ज़रूरी
तो नहीं !
अपने रूप स्वरुप को
और विकृत कर
इस तरह संयम और
मर्यादा को त्याग
बेढंगा फूहड़
श्रृंगार कर सड़कों पर नाचना
अश्लील हरकतें करना,
भीख माँगना
और लूट खसोट करना भी
कुछ ज़रूरी तो नहीं !
संसार में वह स्त्री
भी अधूरी है
जो माँ नहीं बन सकती
वह पुरुष भी अधूरा
है
जो पिता नहीं बन
सकता
लेकिन क्या सब इसी
स्तर पर उतर आते हैं ?
तुम स्वयं अपने
अधूरेपन को
जगजाहिर करते हो
अपनी हरकतों से !
ना ज्ञान की कमी है
तुम्हारे पास
न विवेक की, ना ही
प्रतिभा की !
फिर क्यों इनका
उपयोग नहीं करते ?
तुम स्वयं ना जताओ
तो
कौन तुम्हारे इस दोष
को जानेगा !
क्यों तुम एक
डॉक्टर, इंजीनियर,
वैज्ञानिक या
प्रोफ़ेसर नहीं बन सकते ?
कोई तुम्हें विवश
नहीं कर सकता
इस नारकीय जीवन को
भोगने के लिए
यदि तुम स्वयं न
चाहो तो !
अपना स्वाभिमान जगाओ
अपनी अंतरात्मा की
आवाज़ सुनो
आत्म मंथन करो और
तोड़ डालो
इन श्रंखलाओं को जो
तुम्हीं ने बाँधी हैं
स्वयं को जकड़ने के
लिए
इस समाज के डर से !
तुम किन्नर हो
क्रिमिनल नहीं !
अपना जीवन सँवारने
का हक़ है तुम्हें
तुम चाहोगे तो
सम्मानपूर्वक भी जी सकोगे
वरना जो जीवन जी रहे
हो
उससे शिकायत कैसी !
यह भी तो तुम्हारा
ही चुनाव है !
साधना वैद
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 04 जून 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार रवीन्द्र जी ! सादर वन्दे !
Deleteबहुत प्रभावशाली रचना
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद एवं आभार केडिया जी !
Deleteसारगर्भित प्रस्तुति।
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद शास्त्री जी ! आभार आपका !
Deleteव्वाहहहहह
ReplyDeleteवेहतरीन
सादर नमन
हार्दिक धन्यवाद यशोदा जी ! बहुत बहुत आभार आपका सखी !
Deleteउम्दा रचना यथार्थ को दर्शाती हुई |
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जीजी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteअपना जीवन सँवारने का हक़ है तुम्हें
ReplyDeleteसार्थक रचना
हार्दिक धन्यवाद मान्यवर ! आभार आपका !
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