माना कि रण भूमि में उतरने के बाद
युद्ध करने के अलावा
कोई भी विकल्प शेष नहीं रहता !
किन्तु जीवन संग्राम में
किसी भी महासमर के लिये
अब किसी भी कृष्ण का
आह्वान मत करना तुम सखी !
किसी भी कृष्ण की प्रतीक्षा
मत करना !
इस युग में उनका आना
अब संभव भी तो नहीं !
और उस युग में भी
विध्वंस, संहार और विनाश की
वीभत्स विभीषिका के अलावा
कौन सा कुछ विराट,
कौन सा कुछ दिव्य,
और कौन सा कुछ
गर्व करने योग्य
दे पाये थे वो ?
जीत कर भी तो
सर्वहारा ही रहे पांडव !
अपनी विजय का कौन सा
जश्न मना पाये थे वो ?
पांडवों जैसी विजय तो
अभीष्ट नहीं है न तुम्हारा !
इसीलिये किसी भी युग में
ऐसी विजय के लिये
तुम कृष्ण का आह्वान
मत करना सखी !
रण भूमि में विजय पताका
भले ही तुम्हारी फहर जाए
किन्तु विध्वंस की ऐसी विनाश लीला
अब देख नहीं सकोगी तुम,
संसार के किसी भी कोने में
अपना क्षोभ एवं ग्लानि विदीर्ण मुख
छिपा भी नहीं पाओगी तुम
और ना ही अब
हिमालय की गोद में
शरण लेने के लिये
तुममें शक्ति शेष बची है !
साधना वैद
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 11.6.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3729 में दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज गुरुवार (11-06-2020) को "बाँटो कुछ उपहार" पर भी है।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
--
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !
Deleteसच जीवन का महासमर खुद ही लड़ना होता है उसके लिए किसी से किसी से भी सहायता की उम्मीद बेमानी है
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति
हार्दिक धन्यवाद कविता जी ! आभार आपका !
Delete"इसीलिये किसी भी युग में
ReplyDeleteऐसी विजय के लिये
तुम कृष्ण का आह्वान
मत करना सखी !
रण भूमि में विजय पताका
भले ही तुम्हारी फहर जाए
किन्तु विध्वंस की ऐसी विनाश लीला
अब देख नहीं सकोगी तुम," ...
मिथक के प्रसंग के साथ भी मिथक से परे व्यवहारिकता से रूबरू कराती रचना/विचारधारा ...
हृदय से आभार आपका सुबोध जी ! बहुत बहुत धन्यवाद !
Deleteइसीलिये किसी भी युग में
ReplyDeleteऐसी विजय के लिये
तुम कृष्ण का आह्वान
मत करना सखी !
रण भूमि में विजय पताका
भले ही तुम्हारी फहर जाए
किन्तु विध्वंस की ऐसी विनाश लीला
अब देख नहीं सकोगी तुम," ...
उत्कृष्ट रचना ,लाजवाब, बधाई हो आपको
हार्दिक धन्यवाद ज्योति जी ! आभार आपका !
Deleteयुद्ध हमेशा ही अपने पीछे विनाश छोड़ जाता है
ReplyDeleteबहुत सुंदर
बिलकुल सत्य कहा आपने मान्यवर ! हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आपका !
Deleteकटु सत्य बयान करती रचना |
ReplyDeleteदिल से बहुत बहुत धन्यवाद जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Delete