पहले लिखा करते थे ख़त कलम से ! स्याही पेन में भर कर पहले से ही तैयार रखते थे ! जो खत का मजमून लंबा हो तो इस बात का ध्यान रखते थे कि कहीं स्याही बीच में ही समाप्त न हो जाए ! कभी कभी पेन लीक कर जाते थे और हाथों की उँगलियाँ स्याही से सन जाती थीं ! बड़े जतन करते कि पेन लीक ना करे ! कभी माउथ की चूड़ियों पर वैसलीन लगाते तो कभी धागा लपेटते लेकिन सौ जतन करने के बाद भी पेन लीक कर जाते परिणाम स्वरुप सीधे हाथ की तर्जनी, अंगूठा और मध्यमा सदैव स्याही से रंगे ही रहते ! कभी कभी पन्नों पर लिखते समय स्याही के बड़े बड़े गोले टपक जाते और सारे सुलेख का सत्यानाश हो जाता ! स्कूल की यूनिफार्म तो कोई ऐसी बचती ही नहीं थी जिस पर स्याही के निशान न हों !
दशहरे के अवसर पर सारे पेन धो धोकर खूब चमकाए जाते और घर के अस्त्र शस्त्रों के साथ कलम और स्याही की दवात की भी पूजा होती ! उस दिन प्रसन्नता इस बात की अधिक होती थी कि सारे कलम पूजा के स्थान पर रख दिए जाते थे तो पढ़ाई से फुर्सत मिल जाती थी ! इस कलम और दवात से जुड़े जाने कितने संस्मरण और किस्से अभी तक मन मस्तिष्क में बिलकुल ताज़े हैं ! स्कूल के फर्नीचर में डेस्क पर एक खाना बना हुआ होता था जिसमें स्याही की दवात आराम से फिट हो जाती थी और उसके लुढ़कने का खतरा नहीं होता था ! सखियों सहेलियों को जन्मदिन का तोहफा एक खूबसूरत सा पेन ही हुआ करता था ! और घनिष्टतम सखी को नए पेन के साथ अपना पुराना पेन भी बड़े प्यार के साथ दिया जाता था जिसकी उसने कभी दिल खोल कर तारीफ़ की होगी !
जब कलम हाथ में होती थी तो जज़बात का एक तूफ़ान सा हृदय में हिलोरें लेता था ! जाने कितने पोस्टकार्ड, अंतर्देशीय और सैकड़ों कॉपियाँ, डायरियाँ, रजिस्टर और काग़ज़ रंग डाले थे स्याही से इस कलम के माध्यम से ! ख़त लिखते थे तो अपना दिल ही उड़ेल कर रख देते थे ख़त में ! अब कहाँ है वो बात रिश्तों में ! ना ख़त ही लिखे जाते हैं, ना कलम की ही ज़रुरत बची और ना स्याही की ही दरकार रही ! अब तो फोन पर हाय हेलो में ही रिश्ते सिमट कर रह गए हैं ! थोड़ी अधिक अंतरंगता जतानी हो तो हर भाव को दर्शाने के लिए इमोजी हैं ना तरह तरह के उन्हें ही चिपका दिया जाता है संवादों के संग या फिर वीडियो चैट कर लीजिये ! बस हो गयी इतिश्री अंतर के उद्गारों की !
हमें तो चिंता सी हो गयी है पोस्ट कार्ड और अंतर्देशीय की तरह अब कलम और स्याही भी विलुप्त होने के कगार पर हैं ! कुछ दिनों के बाद इन्हें भी संग्रहालयों में ही देखा जा सकेगा और बच्चों को इनके प्रयोग के बारे में किस्से सुनाये जाया करेंगे !
साधना वैद
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (07-06-2020) को "शब्द-सृजन 24- मसी / क़लम " (चर्चा अंक-3725) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !
Deleteआपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार कुलदीप भाई ! सादर वन्दे !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! आभार आपका !
Deleteसुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई |
ReplyDeleteवाह!साधना जी ,बहुत सुंदर सृजन । पुराने दिन याद दिला दिए आपनें ।
ReplyDeleteदिल से शुक्रिया एवं आभार आपका शुभा जी ! टॉपिक ही इतना सुन्दर था कि सारी यादें सिलसिलेवार मन मस्तिष्क में छाती चली गयीं !
Deleteबहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद मान्यवर ! आभार आपका !
Deleteसुंदर उदगार
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद महोदय ! आभार आपका !
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