निश्छल आँसू प्रेम के, अंतस के उच्छवास !
अनुपम यह उपहार है, ले लो आकर पास !
दीपशिखा सी जल रही, प्रियतम मैं दिन रात !
पंथ दिखाने को तुम्हें, पिघलाती निज गात !
दर्शन आतुर नैन हैं, कब आओगे नाथ !
तारे भी छिपने लगे, होने को है प्रात !
नैन निगोड़े नासमझ, नित्य निहारें बाट !
ना आयेंगे प्राणधन, तज दुनिया के ठाट !
पवन पियाला प्रेम का, पी-पी पागल होय !
सारा जग सुरभित करे, स्वयम सुवासित होय !
गलियन-गलियन घूमती, गंध गमक गुन गाय !
प्रभु चरणों में वास है, क्यूँ न फिरूँ इतराय !
अंतस आलोकित किया, दिखलाने को राह !
आ बैठो इस ठौर तुम, नहीं और कुछ चाह !
मनमंदिर में नेह की, जला रखी है ज्योत !
प्रियतम पथ भूलें नहीं, मिले न दूजा स्त्रोत !
साधना वैद
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! आभार आपका !
Deleteउम्दा लिखा है |
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अनीता जी ! आपका बहुत बहुत आभार ! सप्रेम वन्दे !
ReplyDeleteसुंदर रचना।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद सुजाता जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteसुन्दर भाव लिए रचना |
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जीजी ! बहुत बहुत आभार !
Deleteबेहतरीन
ReplyDeleteआपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद अनीता जी ! आभार आपका !
Deleteसुन्दर दोहे।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद शास्त्री जी ! बहुत बहुत आभार आपका ! सादर वन्दे !
Deleteबहुत सुंदर मनमोहक दोहे। सभी अच्छे लगे परंतु यह विशेष लगा -
ReplyDeleteगलियन-गलियन घूमती, गंध गमक गुन गाय !
प्रभु चरणों में वास है, क्यूँ न फिरूँ इतराय !
सादर, सस्नेह दीदी।
हृदय से आपका धन्यवाद मीना जी ! दोहे आपको अच्छे लगे मेरा श्रम सार्थक हुआ ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteबहुत ही सुन्दर सृजन...।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद सुधा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
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