क्यों ढूँढते हो मुझमें
राधा सी परिपक्वता
सीता सा समर्पण
यशोधरा सा धैर्य
मीरा सी लगन
दुर्गा सा पराक्रम
शारदे सा ज्ञान
मर्दानी सी वीरता
टेरीसा सा बलिदान
मुझे वही रहने दो ना
जो मैं हूँ
क्यों उसे ढूँढते हो मुझमें
जो वहाँ है ही नहीं !
मुझमें मुझीको ढूँढो
उपकार होगा तुम्हारा !
आशाओं अपेक्षाओं के
इस चक्रव्यूह में मैं
इस तरह से गुम हो गयी हूँ
कि बाहर निकलने का
कोई भी मार्ग मुझे
अब दिखाई नहीं देता !
आदर्शों की इस भूलभुलैया में
मैं खुद भी जन्म से अब तक
ढूँढती ही आ रही हूँ खुद को
लेकिन इतने किरदारों में
मैं कौन हूँ
मैं कहाँ हूँ
कोई तो मुझे बताये
मैं क्यों अपने दर्पण में
खुद को न देख कर
किसी और की परछाई देखूँ
क्यों खुद का तिरस्कार कर
किसी और का मुखौटा लगाए
आत्महीनता की आँच में
खुद को सेकूँ
कोई तो मुझे समझाये !
साधना वैद
बहुत बढ़िया! विचारनीय रचना.
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद प्रकाश जी ! आभार आपका !
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 09 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी ! सप्रेम वन्दे प्रिय सखी !
Deleteसुन्दर और सारगर्भित।
ReplyDeleteराधा सी परिपक्वता
ReplyDeleteसीता सा समर्पण.... ढूँढ़ना है तो ढूँढ़ो पर खुद भी तो राम, कृष्ण और गौतम बुद्ध के सद्गगुणों को आत्मसात करके दिखाओ....
बहुत अच्छा संदेश देती रचना है दीदी।
हृदय से आपका बहुत बहुत धन्यवाद मीना जी ! आभार आपका !
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 10.9.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
जी ! आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार दिलबाग जी ! सादर वन्दे !
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 10.9.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
जी ! बहुत बहुत शुक्रिया !
Deleteहार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
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